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________________ यदि तुमने केवल जीवन की गति देखी है, तो पतंजलि कहते हैं, 'यह है अविद्या-जागरूकता का अभाव।' तब तुमने पर्याप्त नहीं देखा। यदि तुम सोचते हो कि कोई व्यक्ति बालक है, फिर वह युवा है, फिर वृद्ध, फिर मर गया तो तुमने देखा केवल चक्र को ही। तुमने देखा गति को बालक, युवा, वृद्ध, मृत, एक लाश। क्या उसको देखा तुमने जो कि थिर रहा इन सब गतियों के बीच? क्या उसे देखा तुमने जो बालक नहीं था, युवा नहीं था और वृद्ध नहीं था? क्या उसे देखा है, जिस पर ये तमाम अवस्थाएं निर्भर करती हैं? क्या उसे देखा है तुमने जो सभी को पकड़े रहता है और सदा बना रहता है वही, और वही, और वही? जो कि न तो जन्मता है और न ही मरता है? यदि तुमने उसे नहीं जाना, यदि तुमने उसका अनुभव नहीं किया, तो पतंजलि कहते हैं-तुम अविद्या में पड़े हो जागरूकता के अभाव में। तुम पर्याप्त रूप से सजग नहीं हो, इसलिए तुम पर्याप्त रूप से जान नहीं सकते। तुम्हारे पास पर्याप्त आंखें नहीं हैं, इसलिए तुम पर्याप्त रूप से गहरे नहीं देख सकते। एक बार तुम्हें आंखें मिल जाएं, वह दृष्टि वह बोध, वह स्पष्टता और उसकी गहरे उतरने की शक्ति तो तुम तुरंत जान लोगे कि परिवर्तन मौजूद है, लेकिन वही सब कुछ नहीं। वस्तुत: यह तो केवल परिधि होती है-जो बदलती, जो कि सरकती। बहुत गहरी नींव में तो है वही शाश्वत, नित्य। क्या तुमने जाना है शाश्वत को? यदि तुमने नहीं जाना, तो वह अविद्या है, तुम सम्मोहित हुए हो परिधि द्वारा। परिवर्तित होते दृश्यों ने तुम्हें सम्मोहित कर लिया है। तुम उसकी पकड़ में बहुत ज्यादा आ गए हो। तुम्हें जरूरत है अलगाव की, तुम्हें जरूरत है थोड़े से फासले की, तुम्हें जरूरत है थोड़े और निरीक्षण की।' अस्थायी को स्थायी समझ लेना अविद्या है; अशुद्ध को शुद्ध समझ लेना अविदया है।' शुद्ध क्या है और अशुद्ध क्या? तुम्हारी साधारण नैतिकता से पतंजलि का कुछ लेना-देना नहीं है। साधारणतया नैतिकता में भेद होता है-कोई चीज भारत में पवित्र हो सकती है और चीन में अपवित्र हो सकती है। हो सकता है कोई चीज भारत में अशुद्ध हो और इंग्लैंड में शुद्ध हो। या, यहां पर भी, कोई चीज हिंदुओं के लिए शुद्ध हो सकती है और जैनों के लिए अशुद्ध। नैतिकता अलग अलग होती है। वस्तुत: यदि तुम नैतिकता की परतो को बंधने लगो, तो वे अलग-अलग होती हैं प्रत्येक व्यक्ति में। पतंजलि नैतिकता की बात नहीं कर रहे। नैतिकता तो केवल एक समझौता है; उसकी उपयोगिता है, लेकिन उसमें कोई सत्य नहीं। और जब पतंजलि जैसा आदमी बोलता है तो वह बात करता है शाश्वत चीजों की, सीमित चीजों की नहीं। हजारों नैतिकताएं संसार में अस्तित्व रखती हैं और वे बदलती रहती हैं हर रोज स्थितियां बदलती हैं, तो नैतिकता को बदलना पड़ता है। जब पतंजलि कहते हैं 'शुद्ध' और 'अशुद्ध तो उनका अर्थ बिलकुल ही अलग होता है। 'शुद्धता' से उनका मतलब है स्वाभाविक; 'अशुद्धता' से उनका मतलब है अस्वाभाविक। और कोई चीज तुम्हारे लिए स्वाभाविक हो सकती है या कि तुम्हारे लिए अस्वाभाविक हो सकती है, इसलिए कोई
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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