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________________ मैं किसी चीज को अस्वीकार नहीं किया, क्योंकि बिलकुल प्रारंभ से ही यह बात मेरे लिए गहनतम निरीक्षण हो गयी थी: कि यदि तुम किसी चीज को अस्वीकार करते हो, तो तुम कभी संपूर्ण नहीं हो पाओगे। कैसे तुम संपूर्ण हो पाओगे यदि तुम कोई चीज अस्वीकार करते हो तो? उस चीज का सदा अभाव बना रहेगा। यह बात मेरे लिए एक गहन निरीक्षण बन गई कि कोई चीज अस्वीकार नहीं करनी है और हर चीज अपने में समा लेनी है। जीवन को एक ही स्वर नहीं बनना है, बल्कि बनना है एक समस्वरता एक ही स्वर चाहे कितना ही सुंदर क्यों न हो, उबाऊ होता है बहुत से स्वरों का समूह, बहुत ही भिन्न, एकदम विपरीत स्वर जब एक समस्वरता में मिलते हैं, तो सौंदर्य निर्मित करते हैं। सौंदर्य न तो विधायक में है और न ही नकारात्मक में है, सौंदर्य है समस्वरता भरे संगीत में इसे फिर से दोहरा दूं मैं सौंदर्य न तो सत्य में है और न असत्य में हैं; सौंदर्य न तो करुणा में है और न ही क्रोध में, सौंदर्य योग में है। जहां विपरीत मिलते हैं वहीं मौजूद होता है परमात्मा का मंदिर जहां विरोधी तत्व मिलते हैं, वहीं है शिखर, जीवन का शिखर अंतिम प्रश्न: आपने कहां कि संवेदनशील होना धार्मिक होना है लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि संवेदनशीलता मुझे इंद्रिय लोलुपता और भोगासक्ति में ले जाती है मेरे लिए क्या रास्ता है? तो भोगो! तो हो जाओ इंद्रिय लोलुप। तुम इतने भयभीत क्यों हो जीवन से? क्यों तुम - आत्महत्या करना चाहते हो? भोगासक्ति में क्या बुराई है और इंद्रिय - लोलुप होने में ही क्या बुरा है? तुम्हें यही सिखाया गया है। और मैं यह कह रहा हूं। तब तुम संवेदनशील होने में भयभीत हो जा हो। क्योंकि यदि तुम संवेदनशील होते हो, तो हर चीज विकसित होगी संवेनदशीलता के साथ। सुखवादिता विकसित होगी - सुंदर होती है वह । सुखवादी होने में कुछ बुरा नहीं है। एक जीवंत आ सुखलोलुप होगा ही। एक मुरदा आदमी और एक जीवंत आदमी में अंतर क्या होता है? मुरदा आदमी संवेदनात्मक नहीं रहता; तुम छुओ और उसे कोई अनुभूति नहीं होती। तुम चूमो उसे और वह प्रत्युत्तर नहीं देता! मैंने पिकासो के बारे में एक कथा सुनी है। एक स्त्री पिकासो के चित्रों की प्रशंसा कर रही थी और वह बोली, 'कल मैं गयी एक मित्र के घर और वहा मैंने तुम्हारा स्वयं का चित्र देखा। और मैंने उसे इतना
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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