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________________ ज्यादा प्यार किया, और मैं इतनी प्रभावित हई, कि मैंने चूम लिया चित्र को।' पिकासो ने उस स्त्री की तरफ देखा और बोला, ' और क्या चित्र ने उत्तर दिया? क्या प्रत्युत्तर में चित्र ने तुम्हें चूमा?' वह स्त्री बोली, 'कैसी नासमझी की बात है! एक चित्र कैसे जवाब दे सकता है?' तब पिकासो कहने लगा, 'तो मैं नहीं था। एक मरी हई चीज थी, वह मैं कैसे हो सकता था?' यदि तुम जीवंत होते हो तो तुम्हारी इंद्रिया अपनी समग्र क्षमता से कार्य करेंगी। और तुम सुखभोगी बनोगे। तुम्हें चाहिए भोजन और तुम स्वाद लोगे; तुम स्नान करोगे और तुम अनुभव करोगे पानी की ठंडक। तुम चलोगे बाग में और तुम सूंघोगे सुगंधि को, तुम संवेदनात्मक होओगे। एक स्त्री गुजरेगी और शीतल बयार तुम्हारे भीतर चलेगी। ऐसा ही होगा क्योंकि तुम जीवत हो! एक सुंदर स्त्री पास से गुजरती हो और कुछ न हो तुम्हारे भीतर-तो तुम मुरदा हुए, तुमने मार लिया स्वयं को। सुखवादिता संवेदनशील होने का एक भाग है। सुखवादिता के भय के कारण सारे धर्म भयभीत हैं संवेदनशीलता से, और संवेदनशीलता जागरूकता है। इसलिए वे जागरूक होने की बातें तो करते रहते हैं, लेकिन वे तुम्हें संवेदनशील होने नहीं देते, जिससे कि तुम जागरूक हो नहीं सकते। यह बात मात्र एक बातचीत बन जाती है। और वे सुख- भोग के लिए तुम्हें अनुमति देते नहीं। वस्तुत: उन्होंने वषयासक्ति' शब्द गढ़ लिया है। इसमें से निंदात्मक ध्वनि आती है। जिस क्षण तुम कहते 'विषयासक्ति', तो तुमने निंदा कर ही दी होती है। यही है विडंबना: धार्मिक लोग भोगने की निंदा करते, और वे निर्मित कर देते भोग को। वे निंदा करते विषय-सुख की और वे निर्मित करते विषयासक्ति को। कारण क्या है ऐसा करने का? जब तुम दमन करते जाते हो तुम्हारी संवेदनाओं का, तो वही दमन ही आसक्ति निर्मित कर देता है। वरना एक सच्चा जीवंत व्यक्ति कभी भोगासक्त नहीं होता है। वह आनंदित होता है, लेकिन वह कभी भी भोगासक्त नहीं होता है। वह आदमी जो रोज खूब अच्छी तरह भोजन करता हो, भोजन के रस में ही आसक्त नहीं रह सकता। लेकिन उपवास किए जाओ, तो आसक्ति पैदा हो जाती। जो आदमी उपवास करता रहता है वह सोचता जाता है- भोजन, भोजन, भोजन की ही बात। भोजन एक मोह बन जाता है। वह खाता है चौबीसों घंटे फिर जब वह उपवास तोड़ता है, तो वह एकदम दूसरी अति में डूब जाता है। एक अति पर तो वह उपवास करता है, दूसरी अति पर वह बहुत ज्यादा खा लेगा। अभी दो दिन पहले एक संन्यासी आया इंग्लैंड से और कहने लगा कि वह उपवास करना बहुत पसंद करता है। वह बहुत कम खाता है और वह भी एक दिन छोड़कर। मैंने कहां उससे, 'उपवास एक खतरनाक चीज बन सकता है। कई बार इसका उपयोग किया जा सकता है, लेकिन दवाई की भाति, जीवन की एक शैली की भांति नहीं। उपवास जीवन का ढंग कभी नहीं बन सकता है। और मैंने बात की उससे-उपवास के मोह से उसे बाहर लाने के लिए। तीन दिन तक तो वह बिलकुल दिखाई ही नहीं पड़ा। मैंने प्रतीक्षा की।'कहां चला गया वह! क्या हुआ?' तीन दिन के बाद वह आया और वह
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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