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________________ लेकिन वे होती हैं पूरक। वस्तुत: वे विपरीत नहीं होती, केवल ध्रुव विपरीत होते हैं। वे परस्पर मदद देते हैं विकसित होने में। मैं चाहूंगा कि तुम अपनी चरम ऊंचाई तक विकसित होओ, और मैं यह भी न चाहूंगा कि तुम पाखंडी बनो। तुम बनी सच्चे और स्वाभाविक। तो तुम्हारे लिए मेरा संदेश क्या है? मेरा संदेश है : प्रेम बड़ा है, इतना बड़ा कि तुम्हें घृणा की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं। घृणा को उसका हिस्सा बनने दो, उसे विकसित होने दो। वह तुम्हारे स्वाद में नमक मिलाएगी। करुणा विशाल होती है; एक छोटा-सा आकाश का टुकड़ा घृणा के नाम किया जा सकता है-उसमें कुछ बुरा नहीं। लेकिन क्रोध, करुणा का ही हिस्सा होना चाहिए। क्रोध अलग नहीं होना चाहिए, उसे करुणा का ही हिस्सा होना चाहिए। घृणा प्रेम का हिस्सा होनी चाहिए। और मृत्यु जीवन का हिस्सा होनी चाहिए। पीड़ा सुख का, दुख उत्सव का, मंगलमय आशीष का हिस्सा होना चाहिए; अंधकार को प्रकाश का हिस्सा होना चाहिए। और फिर कुछ गलत नहीं, कोई पाप नहीं। पाप को पुण्य का ही हिस्सा होना चाहिए। विशाल बनो। उठो अपनी परम ऊंचाई तक। बौने मत बने रहो। यदि तुम बौने-बने रहे तो तुम सदा शिकायत करते रहोगे परमात्मा के खिलाफ, क्योंकि कैसे तुम परितृप्त अनुभव कर सकते हो? अपनी ऊंचाई तक उठो और भयभीत मत होओ। नकारात्मक बढ़ेगा तुम्हारे साथ, वह सुंदर है। नकारात्मक एक भाग है, पूरक है। तो भी नकारात्मक एक हिस्सा ही होना चाहिए विधायक का। ऐसा ही होना चाहिए क्योंकि वह नकारात्मक है। नकारात्मक संपूर्णता नहीं बन सकता और विधायक एक हिस्सा नहीं बन सकता नकारात्मक का। इसे समझ लेना है। जीवन कैसे एक भाग बन सकता है मृत्यु का, मृत्य तो मात्र एक अभाव है। प्रकाश अंधकार का एक अंश कैसे हो सकता है? अंधकार और कुछ नहीं है सिवाय प्रकाश के अभाव के, लेकिन अंधकार समा सकता है प्रकाश में। जरा बाहर देखो-सूर्य उदय हो चुका है। इतना ज्यादा प्रकाश बरस रहा है पेड़ों तले, छोटी-छोटी चीजों में, छाया के टुकड़ों में, कोई चीज गलत नहीं। एक थका हुआ यात्री आता है और बैठ जाता है वृक्ष तले और शरण पा लेता है। बाहर गर्मी है और वृक्ष के नीचे शीतल है। वृक्ष के नीचे की वह छाया, एक हिस्सा है। हर नकारात्मक चीज को विधायक का हिस्सा होने दो। और विपरीत बात संभव नहीं, क्योंकि विधायक अस्तित्व रखता है। नकारात्मक, मात्र एक अनुपस्थिति है। ऐसा संभव है। मैं तुमसे कहता हूं ऐसा संभव है क्योंकि ऐसा घटा है मुझको। इसलिए बहुत कठिन है मुझे समझना। तुम चाहते हो, मैं एक ध्रुव होऊ-और मैं हूं दोनों। लेकिन ऐसा घटा है मुझको; ऐसा घट सकता है तुमको। और ऐसा ही घटता रहा है उन सब लोगों को जो सही दिशा की ओर चले हैं और जिन्होंने समग्र को स्वीकार किया है।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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