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________________ वह घृणा को सोख सकता है। करुणा बड़ी होती है, इतनी विशाल कि क्रोध का अंश समाया जा स है उसके द्वारा। वह ठीक है। सच है, बिना क्रोध की करुणा बिना नमक के भोजन की भाति होगी। उसमें नमक न होगा, ऊर्जा न होगी। वह बेस्वाद होगी, बासी। निस्संदेह, नकारात्मक सदा विकसित होगा विधायक के साथ। उदाहरण के लिए, यदि एक समाज अस्तित्व रखता है जो कहता है कि 'तुम्हारे शरीर का बायां हिस्सा गलत है, इसलिए उसे विकसित मत होने दो, शरीर का केवल दायां हिस्सा ही ठीक है, इसलिए शरीर के दाएं हिस्से को विकसित होने दो और शरीर के बाएं हिस्से का दमन होने दो, उसे पूरी तरह काट दो'-तो क्या घटेगा? या तो तुम पंगु हो जाओगे, क्योंकि यदि तुम बायें को विकसित न होने दो, तो दायां विकसित न होगा, वे साथसाथ विकसित होते हैं, या तुम अर्धविकसित रह जाओगे, जैसे कि बहुत से मनुष्य अर्धविकसित रह गए हैं, या तुम पाखंडी बन जाओगे। तुम छिपाओगे तुम्हारा बायां हिस्सा और तुम कहोगे कि तुम्हारे पास केवल दाया हिस्सा है। और तुम कहीं न कहीं सदा छिपाए रहोगे बायां हिस्सा। तुम पाखंडी हो जाओगे-नकली, अप्रामाणिक, एक झूठ, एक जीवंत झूठ-जैसे कि धार्मिक लोग होते हैं। सौ में से निन्यानबे तथाकथित धार्मिक लोग झूठे हैं, नितांत झूठे, क्योंकि जो वे कहते हैं कि वे घृणा नहीं करते हैं, यह असंभव है। यह अस्तित्व के गणित के ही विरुद्ध है। वे झूठे ही होंगे। उनकी निजी अवस्था में कोई खोज करने की कोई जरूरत नहीं, यह प्रकृति के विरुद्ध है, यह संभव नहीं। निन्यानबे प्रतिशत पाखंडी हैं और एक प्रतिशत सीधे-सादे लोग हैं। ये निन्यानबे प्रतिशत चालाक, होशियार लोग हैं। वे बायां भाग छिपा लेते हैं। दोनों हिस्से समान रूप से विकसित होते हैं, लेकिन एकदम छिपा लेते हैं बायां भाग और बात करते हैं दाएं भाग की। संसार को तो वे दिखाते हैं दाया भाग और बायां भाग उनका निजी संसार होता है। उनके घरों में पीछे के दरवाजे होते हैं। आगे के दवार पर वे बात कर रहे होते हैं कुछ और। एक प्रतिशत जो निर्दोष लोग हैं, सीधे-सरल, बहुत जोड़-तोड़ बैठाने वाले या बौद्धिक नहीं, चालाक नहीं, वे बुद्धिहीन बने रहते हैं। वे सचमुच ही दमन करते हैं, और जब वे दमन करते हैं बाएं का, तब दाएं का दमन हो जाता है। वे बने रह जाते हैं बुदधिहीन। मेरा मिलना हुआ है दो प्रकार के धार्मिक लोगों से निन्यानबे प्रतिशत पाखंडी और एक प्रतिशत बुद्धिहीन! लेकिन सारी जमात ही व्यर्थ है। सारी जमात ही बोझ है; सारी बात ही है एक मूढ़ता। मैं नहीं चाहूंगा कि तुम वैसे हो जाओ, मैं नहीं चाहूंगा कि तुम पंगु और बौने रहो, हीनता में जीयों। तुम्हें विकसित होना है तुम्हारी पूरी ऊंचाई तक। लेकिन वैसा संभव है तभी यदि नकारात्मक और विधायक दोनों को स्वतंत्रता मिले। दोनों तुम्हारे पंख हैं। कैसे पक्षी उड़ सकता है एक पंख के साथ? कैसे तुम चल सकते हो एक पैर के साथ? यह बात अस्तित्व रखती है जीवन की प्रत्येक सतह पर : दो की जरूरत होती है-विपरीतता में। वे तनाव देती और देती गति की संभावना। वे एक-दूसरे के विपरीत जान पड़ती हैं,
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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