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________________ उसे छोड़ने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उसे छोड़ने में ही या कैसे छोड़ने की बात पूछने में ही, तुम उसमें विश्वास करते हो, तुम उससे अभी तक चिपके हु होते हो। ऐसा हुआ कि एक झेन गुरु एक सुबह उठा और वह अपने शिष्यों से बोला, 'मुझे रात एक स्वप्न आया क्या कृपा करके तुम मेरे लिए उसकी व्याख्या कर दोगे?' वह शिष्य बोला, 'जरा ठहरिए आप, मैं थोड़ा ठंडा पानी ले आऊं जिससे कि आप अपना चेहरा धो सकें।' वह चला गया और पानी लेकर लौटा। गुरु ने अपना चेहरा धोया। उसी समय एक दूसरा शिष्य गुजरता था पास से और गुरु ने उसे बुलाया और कहां, 'सुनो, मुझे रात एक स्वप्न आया क्या कृपा करके तुम मेरे लिए उसकी व्याख्या कर दोगे?' । शिष्य ने देखा, और यह देखते हुए कि गुरु ने अपना चेहरा धो लिया था, वह बोला, 'ठहरिए, बेहतर यही है कि मैं आपके लिए चाय का एक प्याला ले आऊं ।' वह ले आया चाय का प्याला। गुरु ने चाय पी, हंस पड़ा और आशीष दिया दोनों शिष्यों को वह बोला, 'तुमने ठीक किया। यदि तुमने व्याख्या कर दी होती मेरे स्वप्नों की, तो मैंने तुम्हें बाहर फेंक दिया होता आश्रम से क्योंकि जब स्वप्न समाप्त हो जाता है और आदमी जान लेता है कि स्वप्न था, तो व्याख्या का क्या अर्थ रहा?' उसे व्याख्यायित करना यही बताता है कि तुम अभी भी उसी में जीते हो। तुम अब भी सोचते हो कि वह वास्तविक है। इसलिए पूरब में हमने कभी चिंता नहीं की स्वप्नों की व्याख्या करने की। ऐसा नहीं है कि हम उसकी सत्यता तक नहीं पहुंचे। फ्रायड से चार-पांच हजार वर्ष पहले पूरब का सामना हुआ स्वप्नों की सत्यता से इस घटना से चेतना को तीन क्षेत्रों में बांटने वाले हम पहले थे जागरण, स्वप्न और गहन निद्रा (सुषुप्ति)! लेकिन हमने व्याख्या करने की कभी चिंता नहीं की, क्योंकि स्वप्न तो स्वप्न है; वह वास्तविक नहीं होता है। केवल उसमें से जाग जाना होता है, बस इतना ही। और यदि तुम पहले से ही जागे हुए हो तो यह बेहतर है कि तुम चेहरा धो लो सिग्मंड फ्रायड के सारे विश्लेषण से तो ठंडा पानी ज्यादा मदद देगा। यदि तुम जागे हुए हो, तो चाय का एक प्याला बेहतर है सारे जुंग से छूट जाओ पूरी बात से ही । पहली तो बात, स्वप्न झूठा होता है। और फिर तुम व्याख्या करने लगते हो स्वप्न की। तुम्हारी व्याख्या द्वारा ही वह तुम्हारे लिए नया सत्य बनता जाता है, वह फिर वास्तविक हो जाता है। ऐसा केवल स्वप्न के साथ नहीं होता, तुम्हारे सारे जीवन के साथ ही ऐसा होता है। तुम्हारा सारा जीवन एक स्वप्न की भांति है उसे किसी व्याख्या की जरूरत नहीं इतना जानना ही पर्याप्त है कि वह एक स्वप्न है। तुम्हें उससे बाहर आना होता है। कैसे तुम सुबह स्वप्न से बाहर आ जाते हो? क्या तुमने ध्यान से देखा है कभी? यदि तुमने ध्यान से देखा है तो तुम जान लोगे अहंकार से बाहर आना कैसे होता है। सुबह कैसे तुम स्वप्न से या नींद से बाहर आ जाते हो? कैसे बाहर आते हो तुम? एक क्षण पहले तुम गहरी नींद सोए हुए थे, और फिर अचानक तुम सुनते हो पक्षियों की आवाजें, दूध वाला दरवाजा खटखटा रहा होता है, नौकरानी आ
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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