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________________ अहंकार ही हो तुम। तुम समर्पण की ओर नहीं बढ़ सकते, तुम ही हो बाधा, इसलिए जो कुछ तुम करते हो वह गलत होगा। तुम इस विषय में कुछ नहीं कर सकते। तुम्हें तो बस, बिन कुछ किए ही, सजग रहना है। यह है भीतरी संरचना: जो कुछ भी तम करते हो वह अहंकार दवारा ही किया जाता है; और जब कभी तुम कुछ नहीं करते और केवल साक्षी बने रहते हो, तब तुम्हारा अहंकारशून्य हिस्सा काम करने लगता है। तुम्हारे भीतर साक्षी है निरहंकारिता, और कर्ता है अहंकार। बिना कुछ किये अहंकार अस्तित्व नहीं रख सकता। यदि तुम समर्पण करने को भी कुछ करते हो, तो उससे अहंकार ही मजबूत होगा। और तुम्हारा समर्पण फिर एक बहुत सूक्ष्म अहंकारयुक्त दृष्टिकोण बन जाएगा। तुम कहोगे, 'मैंने समर्पण कर दिया। तुम 'दावा करोगे समर्पण का, और यदि कोई कहे कि यह बात सच नहीं, तो तुम क्रोध अनुभव करोगे, आघात अनुभव करोगे। अहंकार अब भी वहा मौजूद रहता है, सम करने की कोशिश करता हुआ। अहंकार कुछ भी कर सकता है; केवल एक चीज जो अहंकार नहीं कर सकता, वह है अक्रिया, साक्षीभाव। तो जरा बैठना चुपचाप, देखना कर्ता को और किसी भी ढंग से जोड़-तोड़ करने की कोशिश मत करना। जिस क्षण तुम होशियारी से गणित बैठाना शुरू कर देते हो, अहंकार वापस आ चुका होता है। कुछ नहीं किया जा सकता है उसके लिए; व्यक्ति को बस साक्षी बने रहना होता है, उस दुख का, जिसे कि अहंकार निर्मित करता है-झूठे सुख-संतोष जिनके आश्वासन अहंकार देता है। इस संसार की क्रियाएं और उस संसार की, आध्यात्मिक संसार की क्रियाएं; ईश्वरीय हों या भौतिक, जो भी हों क्षेत्र, अहंकार ही कर्ता बना रहेगा। तुम्हें कुछ करना नहीं है और यदि तुम कुछ करने लगते हो तो तुम सारी बात ही चूक जाओगे। केवल मौजूद रहना, देखना, समझना और कुछ मत करना। मत पूछना कि 'अहंकार को कैसे गिराएं?' कौन गिराएगा उसे? कौन कैसे गिराएगा? जब तुम कुछ नहीं करते, तो अचानक साक्षी वाला हिस्सा कर्ता से अलग हो जाता है : एक अंतराल आ बनता है। कर्ता कार्य करता जाता है और देखने वाला देखता ही रहता है। अकस्मात, तम एक नए प्रकाश से भर जाते हो, एक नयी मंगलमयता से। तुम नहीं हो अहंकार। तुम कभी रहे नहीं अहंकार। कैसी मूढ़ता है कि तुमने कभी इसमें विश्वास भी किया! ऐसे लोग हैं जो अहंकार पूरे करने की कोशिशों में लगे हुए हैं, गलत हैं वे। ऐसे लोग हैं जो अपनेअपने अहंकार गिरा देने की कोशिश कर रहे हैं, वे गलत हैं। क्योंकि जब साक्षी का जन्म होता है तो तुम सारे खेल को देखते भर हो। कुछ पूरा करने को नहीं है और कुछ गिराने को नहीं है। अहंकार किसी ठोस वस्तु से नहीं बना हुआ है। यह उसी चीज से बना हुआ है जिससे कि स्वप्न बनते हैं। यह एक विचार मात्र है, हवा का एक बुदबुदा है-मात्र गर्म हवा तुम्हारे भीतर की, और कुछ भी नहीं। तुम्हें
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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