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________________ सदा ही सीधे तौर पर सरकता है धर्म की ओर, बिलकुल वैसे ही जैसे कि एक पक्का पर-पीडक सरकता है राजनीति की ओर। राजनीति धर्म है पर-पीड़क की, धर्म राजनीति है स्व-पीड़क की। लेकिन यदि एक स्व–पीड़क बहुत निश्चित नहीं होता, तब वह ढूंढ लेता है दूसरे वैकल्पिक मार्ग। वह बन सकता है कलाकार, चित्रकार, कवि, और स्वयं को पीड़ा पहुंचाए जा सकता है-कविता, साहित्य, चित्रकला के नाम पर। तुमने सुना होगा एक बड़े डच चित्रकार, विन्सेंट वानगाग का नाम। वह पक्का स्व-पीड़क था। यदि वह भारत में पैदा हुआ होता, तो बन गया होता महात्मा गांधी; लेकिन वह बना चित्रकार। कुछ ज्यादा धन नहीं था उसके पास। उसका भाई उसे जीने मात्र जितना पैसा दिया करता था। सप्ताह के सात दिनों में से, वह केवल तीन दिन भोजन करता, और सप्ताह के बाकी चार दिन वह चित्र बनाने के खातिर उपवास रखता। वह एक स्त्री के प्रेम में था, लेकिन स्त्री का पिता उससे मिलने की इजाजत न देता था उसको। अत: उसने जबरदस्ती जलती लौ पर रख दिया अपना हाथ और वह बोला, 'मैं जलती लौ पर ही रखे रखेंगा अपना हाथ, जब तक कि आप मुझे उससे मिलने न दोगे।' उसने जला डाला अपना हाथ। एक वेश्या ने कहां उससे, 'तुम्हारे कान बहुत सुंदर हैं', क्योंकि प्रशंसा करने को और कुछ था ही नहीं उसके चेहरे में। वह सबसे अधिक असुंदर व्यक्तियों में से एक था, उसके नाक-नक्श असुंदर थे। वह वेश्या तो इस आदमी के साथ जरूर बड़ी मुश्किल में पड़ गयी होगी, इसलिए उसने कह दिया उससे कि उसके कान बहुत सुंदर हैं। वह घर वापस गया, अपना एक कान काट दिया छुरी से, उसे पैकेट में रखा; बहते खून सहित ही वापस गया उसके पास और कान स्त्री के सामने यह कहते हुए पेश कर दिया कि 'तुमने इसे इतना ज्यादा पसंद किया कि इसे मैं तुम्हें उपहार स्वरूप देना चाहंगा।' उसने चित्र बनाना जारी रखा फ्रांस के सबसे ज्यादा गरम भाग आर्लीज में, जब कि गरमियों में सूरज बहुत तप रहा था। हर एक ने कहां उससे, 'तुम बीमार पड़ जाओगे, सूरज बहुत आग बरसा रहा है', लेकिन सारा दिन, विशेष कर जब कि सूर्य सबसे ज्यादा तप्त रहता, पूरी भरी दुपहरी में, वह मैदानों में खड़ा रहता चित्र बनाते हुए। बीस दिनों के भीतर वह पागल हो गया। वह युवा था, तैंतीस या चौंतीस का ही था, जब उसने मार डाला खुद को, आत्महत्या कर ली। परंतु चित्रकला, कला, सौंदर्य के नाम पर, तुम कर सकते हो स्वयं को पीड़ित। ईश्वर के नाम पर, प्रार्थना के नाम पर, साधना के नाम पर, तुम कर सकते हो स्वयं को पीड़ित। तुम इस ढंग को बहत ही प्रबल पाओगे भारत में : कील, काटो की शैय्या पर लेटे, महीनों महीनों उपवास करने वालों को। तुम्हारी भेंट होगी ऐसे-ऐसे लोगों से जो दस वर्षों से सोए ही नहीं हैं! वे खड़े ही रहते, लड़ते रहते नींद से। वे ऐसे लोग हैं जो खड़े रहे हैं वर्षों तक, उन्होंने दूसरी कोई मुद्रा अपनाई ही नहीं, उनकी टागें करीब-करीब मरदा हो चुकी हैं। ऐसे लोग हैं जो कि आकाश की ओर एक हाथ उठाए-उठाए जी रहे हैं; पूरा हाथ
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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