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________________ मृत हो गया है, उसमें अब और खून संचरित नहीं होता वह मात्र हड्डियों का ढांचा है। ये व्यक्ति बीमार हैं; उन्हें जरूरत है मानसिक इलाज की। लेकिन तो भी हजारों आकर्षित हो जाते हैं उनकी तरफ। तुम्हारे सारे राजनेताओं को, एडोल्फ हिटलर या जोसेफ स्टालिन को या माओत्से तुंग को जरूरत है मानसिक इलाज करवाने की। और तुम्हारे सारे महात्माओं को भी जरूरत है इलाज की। क्योंकि वह व्यक्ति जो कि स्वयं को या दूसरों को पीड़ित करने में रुचि रखता है, बीमार होता है, गहन तौर पर बीमार होता है। पीड़ा में रुचि रखना, चाहे वह किसी दूसरे की हो या कि स्वयं की पीडन में रुचि रखना, बिलकुल ही निश्चित लक्षण है गहन रुग्णता का जब तुम स्वास्थ्यपूर्ण होते हो तब तुम दूसरों को पीड़ित नहीं करना चाहते; तुम स्वयं को पीड़ित नहीं करना चाहते। जब तुम स्वस्थ होते हो, तब तुम आनंदित होना चाहते हो। जब तुम स्वस्थ होते हो, तब तुम इतना आनंदित अनुभव करते हो कि तुम चाहते हो हर किसी को आशीष देना, आनंदित करना। तब तुम चाहोगे कि तुम्हारी मंगलकामनाएं तुम्हारे प्राणों से प्रवाहित हो जाएं सभी के प्राणों में, संपूर्ण अस्तित्व में तुम आनंद के अतिरेक से, उमडाव से भरे होते हो। स्वस्थता एक उत्सव है। अस्वस्थता है पीड़ित करना - दूसरों को करना या स्वयं को करना । पतंजलि पर बोलना शुरू करने से पहले मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं? मैं ऐसा कह रहा हूं क्योंकि अब तक पतंजलि की व्याख्या सदा होती रही है खुद को पीड़ा पहुंचाने वालों के द्वारा। लेकिन मैं जो कुछ भी बोलने जा रहा हूं पतंजलि के बारे में वह समग्ररूपेण अलग होगा दूसरी टीका-टिप्पणियों से। मैं स्व-पीड़क नहीं हूं मैं पर पीड़क भी नहीं हूं। मैं स्वयं उत्सव मना रहा हूं और मैं चाहूंगा कि तुम सम्मिलित हो जाओ मेरे साथ पतंजलि पर मेरी व्याख्या पिछली सारी व्याख्याओं से मूलभूत रूप से अलग होगी। मेरा भाष्य बिलकुल वैसा होगा जैसे कि पतंजलि स्वयं भाष्य करते रहे। - वे न तो परपीड़क थे और न ही स्व-पीड़क वे किसी आंतरिक अस्वस्थता से रहित, मनोवैज्ञानिक समस्याओं से रहित, मानसिक ग्रस्तताओं से रहित, संपूर्णतया पूरे, एकजुट व्यक्ति थे वे थे स्वस्थ, संपूर्ण, संघटित। जो कुछ कहां है उन्होंने उसे तीन ढंग से व्याख्यायित किया जा सकता है। कोई परपीड़क संयोगवश ही शायद इससे जुड़े, लेकिन वह विरल बात है, क्योंकि पर - पीड़क रुचि नहीं रखते हैं धर्म में । माओत्से तुंग, एडोल्फ हिटलर या कि जोसेफ स्टालिन की रुचि धर्म में, पतंजलि में होने की बात की तुम कल्पना नहीं कर सकते नहीं पर पीड़क रुचि नहीं रखते, इसलिए उन्होंने व्याख्या नहीं की। स्व—पीड़क रुचि रखते हैं धर्म में और उन्होंने की है व्याख्या और अपना ही रंग चढ़ाया है पतंजलि पर लाखों लोग हैं वैसे, और जो कुछ कहां है उन्होंने, उसने पूरी तरह विकृत कर दिया है पतंजलि के संदेश को पूरी तरह विनष्ट कर दिया है उसको अब हजारों साल बाद वे व्याख्याएं खड़ी हुई हैं तुम्हारे और पतंजलि के बीच, अभी भी वे बढ़ती चली जा रही हैं!
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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