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________________ नशों का प्रयोग एक आक्रामक प्रयास होता है, जड़ माध्यमों को जगाने का, एक आक्रामक प्रयास जड़ मूढ़ों को जगाने का। तो तुम झटका देते हो उन्हें, और वे बस अपनी आंखों को थोड़ा -सा खोल देते हैं, और वे देखते हैं, 'ही'! और उस समय संसार इतना सुंदर हो जाता है, अविश्वसनीय रूप से संदर। और फिर तुम पकड़ में आ जाते हो क्योंकि तब तुम सोचते कि ऐसा नशे के कारण है कि संसार इतना सुंदर है। अब, जब कि तुम लौट आते हो और यात्रा समाप्त हो जाती है, तो संसार पहले की अपेक्षा और भी ज्यादा गंदा और ज्यादा फीका लगेगा। क्योंकि अब मन में तुम्हारे पास तुलना होती है। कुछ निश्चित घड़ियों के लिए वह एक सुंदर घटना बन गया था, वह स्वयं ही स्वर्ग था। अल्डुअस हक्सले जैसा आदमी भी उलझ गया था और सोचने लगा था कि यही है वह समाधि, जिसकी बात पतंजलि ने कही और जिसे कबीर और बुद्ध उपलब्ध हुए और संसार के सारे रहस्यवादी उपलब्ध हुए! उसने सोचा कि यही थी समाधि। नशा तुम्हें दे सकता है समाधि का झूठा बोध, लेकिन तुम फिर भी होते हो वर्तमान में। केवल नशे के झटके के कारण ही तुम्हारा रचना-यंत्र क्रियान्वित होता है सजगता सहित, लेकिन यह सजगता बहुत लंबे समय तक नहीं रहेगी। यदि तुम इसका प्रयोग करते हो अधिकाधिक, तो नशे की मात्रा ऊंचे और ऊंचे उठानी होगी, क्योंकि उसी मात्रा सहित तुम फिर से जड़ माध्यमों को झटका नहीं दे सकते। उनका तालमेल बैठ जाता है उसके साथ, तब अधिकाधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। नशे केवल इसी तरह कार्य करते हैं। एक बार मुल्ला नसरुद्दीन ने एक खच्चर खरीदा और वह चलता न था। उसने हर तरह से कोशिश की उसे चलाने की। जिस आदमी से उसने उसे खरीदा था, उसने उससे कहां कि खच्चर को पीटे नहीं क्योंकि वह बहुत कोमल था। इसीलिए उसने प्रार्थना की, उसके अनुसार सब किया, और हर चीज की, जो कुछ भी वह कर सकता था। वह चलता न था, वह सुनता न था। तो उसने उस आदमी को बुलाया और कहने लगा, 'किस प्रकार का खच्चर तुमने मुझे दे दिया है?' वह आदमी अपनी छड़ी लिए हुए आया और बहुत जोर से मारी खच्चर के सिर पर। नसरुद्दीन कहने लगा, 'यह तो बहुत हुआ! और तुमने तो कहां था मुझसे कि उसे मारना नहीं।' वह आदमी बोला, 'मैं मार नहीं रहा हूं उसे, मैं तो केवल उसका ध्यान आकर्षित कर रहा हूं।' तुरंत ही खच्चर चलने लगा। जड़ इंद्रिया होती हैं वहां; एल एस डी उन्हें चोट देती है छड़ी की मार जैसी। कुछ पलों के लिए तुम आकर्षित करते हो उनका ध्यान; तुमने दे दिया होता है उन्हें झटका। सारा संसार हो जाता है सुंदर। लेकिन यह कुछ नहीं, यह बात तो बिलकुल ही कुछ नहीं। यदि तुम उपलब्ध हो सको निर्विचार के एक भी क्षण को, तब तुम जान पाओगे। संसार उससे लाखों गुना ज्यादा सुंदर हो जाता है; जितनी झलक कोई एल एस डी तुम्हें दे सकती है। ऐसा इसलिए नहीं होता कि तुम खच्चर के सिर पर चोट कर रहे होते हो। ऐसा सिर्फ इसलिए होता है क्योंकि तुम अब खच्चर के भीतर न रहे। तुम बाहर आ गए,
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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