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________________ '.... इस अवस्था में ज्ञान प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होता है इंद्रियों का प्रयोग किए बिना ही । ' मन जा चुका होता है, और मन के साथ ही उसके सारे सहयोगी, सारे मूढ़ जा चुके होते हैं। वे कार्य नहीं कर रहे होते हैं, वे तुम्हें विश्वांत नहीं करते हैं, वे तुम्हारे प्रत्यक्ष बोध को भंग नहीं करते हैं, वे किसी तरह की बाधाएं निर्मित नहीं करते हैं। वे प्रक्षेपण नहीं करते, वे व्याख्या नहीं करते। वे सारी चीजें अब वहां नहीं होतीं । चेतना मात्र होती है वहां सत्य के सामने । और जब ऐसा घटता है, चेतना सामना करती है चेतना का क्योंकि पदार्थ है नहीं । . जो सुंदरतम प्रतीक मेरे सामने आया है, वह है: एक दर्पण दूसरे दर्पण के सामने आया हुआ । क्या घटेगा जब एक दर्पण सामने आ जाता है दूसरे दर्पण के? एक दर्पण प्रतिबिंबित करता है दूसरे दर्पण को; और दूसरा प्रतिबिंबित करता है इस दर्पण को और दर्पण में कुछ होता नहीं है; केवल प्रतिबिंबित होना; परस्पर प्रतिबिंबित हो जाना- लाखों - लाखों बार । सारा संसार बन जाता है लाखों दर्पण, और तुम भी होते हो एक दर्पण सारे दर्पण खाली होते हैं, क्योंकि वहां कुछ और होता नहीं प्रतिबिंबित होने को, दर्पण का ढांचा, फ्रेम तक भी नहीं होता है। केवल दर्पण ही होता है – दो दर्पण एक दूसरे के आमने -सामने होते हैं! वह सुंदरतम क्षण होता है, सर्वाधिक आनंदपूर्ण प्रसाद उतरता है, फूल बरसते हैं, समष्टि उत्सव मनाती है कि एक और उपलब्ध हुआ, एक और यात्री घर पहुंचा। जो प्रत्यक्ष बोध निर्विचार समाधि में उपलब्ध होता है वह सभी सामान्य बोध संवेदनाओं के पार का होता है- प्रगाढ़ता में भी और विस्तीर्णता में भी। ये दो शब्द बड़े अर्थपूर्ण हैं: 'विस्तीर्णता' और 'प्रगाढ़ता। जब तुम संसार को देखते हो इंद्रियों द्वारा, मस्तिष्क द्वारा और मन द्वारा, तो संसार बहुत फीका होता है उसमें कोई आलोक नहीं रहता। वह धूल - भरा होता है और जल्दी ही वह उबाऊ हो जाता है। व्यक्ति थकान अनुभव करता है - वही वृक्ष, वही लोग, वही कार्यकलाप - हर चीज एकदम पिटी हुई होती है। ऐसा नहीं है। — कई बार एल एस डी लेने से मारिजुआना से या कि हशीश से अचानक कोई वृक्ष ज्यादा हरा हो जाता है। तुमने कभी जाना न था कि वृक्ष इतना हरा था या कि गुलाब इतना गुलाबी था। जब अल्डुअस हक्सले ने पहली बार एल एस डी ली तो वह बैठा हुआ था एक कुर्सी के सामने। अचानक कुर्सी संसार की सुंदरतम चीजों में से एक हो गयी। वह कुर्सी उसके कमरे में वर्षों तक पड़ी रही थी, और उसने कभी न देखा था उसकी तरफ अब वह हीरे की भांति थी कुर्सी अब वही कुर्सी न रही थी । हक्सले मोहित हो गया था कुर्सी पर वह विश्वास न कर सकता था कि क्या घटता है, जब किसी ने नशा किया हो तो ।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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