SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तक मार्ग की बात करेंगे कि वे एक प्रघात होंगे तुम्हारे लिए। और यदि तुम उन्हें प्रवेश करने देते हो स्वयं में, तो तुम्हारी जल्दबाजी तिरोहित हो जाएगी। इसीलिए मैं बात कर रहा हूं मैं बात कर रहा हूं पतंजलि की तुम्हारे ही कारण। तुम जल्दी में हो और मुझे लगता है कि पतंजलि तुम्हारी अधीरता को गिरा देंगे। वे तुम्हें बढ़ाए चलेंगे; यथार्थ तक लौटा लायेंगे। वे तुम्हें तुम्हारे विवेक-बोध तक ले आयेंगे। आज इतना ही। प्रवचन 27 - निर्विचार समाधि और ऋतम्भरा प्रज्ञा दिनांक 7 मार्च 1975; श्री रजनीश आश्रम, पूना। योगसूत्र-(समाधिपाद) ता एव सबीज समाधि:// 46// ये समाधियां जो फलित होती है। किसी विषय पर ध्यान करने से वे सबीज समाधियां होती है। और आवागमन के चक्र से मक्त नहीं करती। निर्विचार वैशारदये अध्यात्म प्रसादः।। 471/ समाधि की निर्विचार अवस्था की परम शुद्धता उपलब्ध होने पर प्रकट होता है आध्यात्मिक प्रसाद।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy