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________________ वह पूरी करता है उस मन की आवश्यकता को जो जल्दी में है, लेकिन यह बात सच नहीं झेन के विषय में। यदि तुम जापान जाओ और पूछो झेन लोगों से, वे प्रतीक्षा करते तीस वर्ष तक, चालीस वर्ष तक प्रतीक्षा करते, सतोरी के घटने की। अचानक संबोधि के लिए भी व्यक्ति को कडा परिश्रम करना होता है। संबोधि अचानक होती है, लेकिन तैयारी लंबी होती है। यह बिलकुल ऐसे होता है जैसे तुम पानी उबालते हो : तुम पानी गर्म करते हो निश्चित डिग्री तक, सौ डिग्री तक, और पानी अकस्मात उड़ जाता है। ठीक-भाप तो अकस्मात बनती है लेकिन तुम्हें ताप को लाना हाता है सौ डिग्री तक। तपने में वक्त लगेगा, और तपन निर्भर करती है तुम्हारी प्रगाढ़ता पर। यदि तुम जल्दी में होते हो तो कोई ऊष्मा नहीं होती है तुम में, क्योंकि तुम चाहोगे झेन सतोरी पा लेना, या कि जल्दी से संबोधि पा लेना, केवल प्रासंगिक रूप से ही, जैसे कि वह प्राप्त की जा सकती हो, जैसे कि वह खरीदी जा सकती हो। दौड़ते हुए, तुम इसे छीन लेना चाहोगे किसी के हाथ से। इस ढंग से ऐसा नहीं किया जा सकता है। फूल होते हैं, मौसमी फूल होते हैं। तुम बीज बोते हो और तीन सप्ताह के भीतर पौधे तैयार हो जाते हैं। लेकिन तीन महीनों में, पौधों में फूल खिले और चले गए, मिट गए। यदि तुम जल्दी में हो, तो नशों में रस लेना बेहतर होगा बजाय कि ध्यान, योग, या झेन में रस लेने के, क्योंकि नशे तुम्हें सपने दे सकते हैं, तात्कालिक सपने; कई बार नरक के और कई बार स्वर्ग के सपने। तब मारिजुआना बेहतर होता है ध्यान से। यदि तुम जल्दी में हो, तब कोई शाश्वत चीज तुम्हें नहीं घट सकती, क्योंकि शाश्वतता की चाहिए शाश्वत प्रतीक्षा। यदि तुम शाश्वतता की मांग कर कि वह तुम्हें घट जाए तो तुम्हें तैयार रहना होगा उसके लिए। जल्दबाजी मदद न देगी। एक झेन कहावत है : यदि तुम जल्दी में होते हो, तो तुम कभी न पहुंचोगे। तुम बैठने भर से पहुंच सकते हो, लेकिन जल्दी करके तुम कभी नहीं पहुंच सकते। वह अधीरता ही बाधा है। यदि तुम्हें जल्दी है तो पतंजलि हैं प्रतिकारक, एंटिडोट। यदि तुम्हें कोई जल्दी नहीं तो झेन भी संभव है। यह कथन विरोधाभासी जान पड़ेगा, लेकिन यह ऐसा ही है। यही कुछ है वास्तविकता, विरोधाभासी। यदि तुम्हें जल्दी होती है, तब इससे पहले कि संबोधि घटे, तुम्हें प्रतीक्षा करनी पड़ती है कई जन्मों तक। यदि तुम्हें कोई जल्दी नहीं होती, तब बिलकुल अभी घट सकती है यह। मैं तुमसे एक कथा कहता हूं जो कि मुझे बहुत ज्यादा प्यारी है। यह प्राचीन भारतीय कथाओं में से एक है। नारद, पृथ्वी और स्वर्ग के बीच के संदेशवाहक, एक पौराणिक व्यक्तित्व, वे जा रहे थे स्वर्ग की
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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