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________________ ऐसा हुआ कि सूफी संत बायजीद के घर में एक चोर घुस गया। रात अंधेरी थी और बायजीद का घर था बिलकुल अंधकार में। क्योंकि वह बहुत गरीब था, वह एक भी मोमबत्ती का खर्च नहीं उठा सकता था। और कोई जरूरत भी न थी क्योंकि वह कभी कुछ करता नहीं था रात को, वह तो बस सो जाता था। जब चोर प्रविष्ट हुआ तो कठिनाई नहीं हुई क्योंकि द्वार सदा खुले रहते थे। चोर प्रवेश कर गया। बायजीद ने किसी की उपस्थिति अनुभव करते हुए कहा, 'मित्र क्या ढूंढ रहे हो यहां?' बायजीद जैसे गुरु के निकट होने से ही, एक चोर तक भी झूठ नहीं बोल सका। वह मौजूदगी ही ? ऐसी थी कि उसने अनुभव किया प्रेम और जुब बायजीद बोला, 'मित्र तुम क्या ढूंढ रहे हो यहां?' तो वह आदमी बोला, 'मुझे ऐसा कहने में अफसोस होता है, लेकिन कहना ही चाहिए मुझे! मैं आपसे झूठ नहीं बोल सकता। मैं एक चोर हूं और कुछ पाने आया हूं।' बायजीद बोला, 'प्रयत्न बेकार है क्योंकि मैं इस घर में रह रहा हूं तीस वर्षों से, और मैंने कुछ नहीं पाया है। लेकिन यदि तुम कुछ पा सको, तो जरा बता देना मुझे।' यदि तुम प्रवेश करते हो मुझ में तो तुम मुझे बिलकुल ही नहीं पाओगे वहां, क्योंकि मैं स्वयं रह रहा हूं इस घर में बहुत-बहुत वर्षों से और मैंने किसी को नहीं पाया है वहां। वही है मेरी प्राप्ति; वही है जो पाया है मैंने–कि वहां कोई नहीं है भीतर-वह अंतस सत्ता है अनता। जितना ज्यादा गहरे जाते हो तुम भीतर, उतना ही कम तुम पाओगे अहं जैसी कोई चीज। और जब तुम पहुंच जाते हो भीतर के गहनतम मर्म तक, तो केवल होती है शून्यता, शुद्ध शून्यता, 'कुछ-नहीं-पन' का विशाल आकाश मात्र होता है। तो संतुलन कैसे अस्तित्व रख सकता है वहां, और कैसे असंतुलन अस्तित्व रख सकता है वहां? पतंजलि सर्वाधिक असाधारण व्यक्तियों में से एक हैं, मैं नहीं। पतंजलि ठीक विपरीत हैं। यदि तुम पतंजलि से कहते मुझ पर बोलने के लिए तो वे नहीं बोल पाते। वे बहुत भरे हुए हैं स्वयं से। लेकिन यदि तुम मुझ से कहो बोलने के लिए-पतंजलि पर, तिलोपा पर, बोधिधर्म पर, महावीर पर, जीसस क्राइस्ट पर-तो यह आसान होता है, बहुत आसान, क्योंकि मैं बिलकुल शून्य हूं। मैं किसी के प्रति उपलब्ध हो सकता हूं। मैं किसी को आने दे सकता हूं मेरे द्वारा बोलने के लिए। मैं हूं बांस की खाली पोगरी-कोई व्यक्ति गीत गा सकता है उसके द्वारा, वह बन सकती है बांसुरी। इसलिए मैं जोड़ नहीं हूं-कविता, रहस्यवाद और तर्क का या किसी भी चीज का। मैं संतुलन बिलकुल नहीं। पर ध्यान रहे, मैं असंतुलन भी नहीं हूं। मैं हूं 'नेति-नेति'; जिसे उपनिषद कहते हैं-'न तो यह और न ही वह।' इसीलिए मैं उपलब्ध हं किसी के लिए भी। यदि पतंजलि जोर देते हैं, चाहते हैं तो वे बोल सकते हैं मेरे दवारा, कोई झंझट नहीं, कोई रुकावट नहीं। इसलिए तुम सदा परेशान रहते हो कि जब मैं बोलता हूं पतंजलि पर, तो वे समस्त अस्तित्व का पूरा चरमोत्कर्ष बन जाते हैं। तब मैं भूल जाता हूं बुद्ध, महावीर, जीसस और मोहम्मद के बारे में, जैसे कि
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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