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________________ वे कभी रहे ही न थे, जैसे कि केवल पतंजलि का ही अस्तित्व रहा हो। क्योंकि उस क्षण मैं पतंजलि के प्रति उपलब्ध होता हूं अपनी समग्रता में। केवल 'कुछ - नहीं - पन' वैसा कर सकता है। इसीलिए ऐसा घट रहा है पहली बार अन्यथा, तुम जीसस को कृष्ण पर बोलते हुए, या कि कृष्ण को बुद्ध पर बोल हुए नहीं पा सकते थे। महावीर और बुद्ध एक ही समय में जीए, एक ही देश में, देश के एक ही हिस्से में वे बिहार के छोटे से प्रदेश में निरंतर घूमते रहे, चालीस वर्ष तक। वे समकालीन थे। कई बार वे इकट्ठे होते एक ही गांव में एक बार वे ठहरे एक ही धर्मशाला में, पर फिर भी परस्पर बोले नहीं उनके पास कुछ था उनके भीतर उनके पास कुछ अपना था कहने को वे एक दूसरे के लिए उपलब्ध नहीं थे। मेरे पास अपना कुछ नहीं कहने को मात्र एक खाली बांस की पांगरी यदि तुम कभी मेरी प्रतिमाएं बनाना चाहो, तो बहुत सीधी-सरल है प्रक्रिया प्रयोग करना खाली बांस का वही होगी मेरी प्रतिमा; तुम मेरा स्मरण कर सकते हो उसके द्वारा। उससे कोई और अर्थ लगाने की जरूरत नहीं - सिर्फ एक शून्यता, सिर्फ एक विशाल आकाश कोई भी पक्षी उड़ान भर सकता है और आकाश की कोई शर्ते नहीं, जैसे कि केवल मानसरोवर झील में हंसों को ही आने दिया जाएगा, लेकिन कौवे नहीं, उन्हें आने देने की आज्ञा नहीं । आकाश उपलब्ध होता है हर एक के लिए; हंस के लिए या कौवे के लिए। एक सुंदर पक्षी हो या एक असुंदर पक्षी-आकाश कोई शर्त नहीं बनाता। पतंजलि के पास संदेश है, मेरे पास नहीं है। या फिर, तुम कह सकते हो कि 'कुछ - नहीं - पन' है मेरा संदेश। और उस 'कछ- नहीं में रहते हुए तुम मेरे ज्यादा निकट हो जाओगे। और 'ना-कुछ' में होने से, तुम मुझे समझ पाओगे । चौथा प्रश्न : बहुत सारे लोग प्रेम को लेकर काफी निराशा अनुभव करते हैं क्या प्रार्थना तक पहुंचने के लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं है? नहीं, यदि तुम प्रेम को लेकर काफी निराशा अनुभव करते हो, तुम सर्वथा निराशा अनुभव करोगे प्रार्थना के विषय में, क्योंकि प्रार्थना और कुछ नहीं है सिवाय प्रेम की खुशबू के प्रेम है फूल की भांति और प्रार्थना है सुवास की भांति। यदि तुम फूल को प्राप्त नहीं कर सकते, तो कैसे तुम प्राप्त कर
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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