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________________ भी न घटने वाला हो, यदि तुम्हें अनंतकाल तक भी प्रतीक्षा करनी पड़े, तो भी प्रतीक्षा करना और यह प्रतीक्षा उदास घुटी हुई प्रतीक्षा नहीं होनी चाहिए। इसे होना चाहिए प्रतीक्षामय उत्सव। इसे आनंदमय उत्सव होना चाहिए। इसे होना चाहिए आनंद से परिपूर्ण। यही चीजें बताती हैं कि तुम और- और निकट हो सकते हो। और अकस्मात एक दिन आता है जब गुरु की प्रज्वलित लौ और तुम्हारे अस्तित्व की लौ एक हो सकती है। अचानक एक छलांग लगती है; तुम वहां नहीं होते, और न ही होता गुरु। तुम एक हो गए होते हो। उस एकमयता में, वह सब जो कि गुरु तुम्हें दे सकता है, उसने दे दिया होता है तुम्हें। उसने स्वयं को उंडेल दिया होता है तुममें। तो खोजी के लिए आवश्यक नहीं होता समाधि की सारी अवस्थाओं में से गुजरना। ऐसा आवश्यक हो जाता है इसलिए क्योंकि तुम पर्याप्त रूप से खोजी नहीं होते हो। तब बहुत सारी अवस्थाएं होती हैं। यदि तुम सचमुच ही प्रगाढ़ होते, सच्चे होते, प्रामाणिक होते, यदि तुम मरने को तैयार होते हो तो इसी क्षण वह घट सकता है। तीसरा प्रश्न. आपने कहा कि पतंजलि कविता रहस्यवाद और तर्क के श्रेष्ठ जोड़ हैं क्या आपके पास भी यही संपूर्ण संतुलन नहीं है? नहीं, मैं तो बिलकुल विपरीत हूं पतंजलि के। पतंजलि के पास एक संपूर्ण जोड़ है कविता, रहस्यवाद और तर्क का। नहीं, मैं तो केवल हूं 'नेति-नेति'; न तो यह हूं और न ही वह हूं। मेरे पास कविता, रहस्यवाद और तर्क का संपूर्ण संतुलन नहीं है। वस्तुत: मेरे पास न तो संतुलन है और न ही है असंतुलन, क्योंकि-संपूर्ण रूप से संतुलित व्यक्ति के पास असंतुलन भी साथ में ही होता है। संतुलन केवल तभी अस्तित्व रख सकता है जबकि असंतुलन का अस्तित्व हो। सुसंगतता केवल तभी अस्तित्व रख सकती है जब विसंगति साथ में ही हो। मैं तो हूं एक विशाल शून्यता की भांति, बगैर किसी समस्वरता के; कोई असमस्वरता भी नहीं। कोई संतुलन नहीं, कोई असंतुलन नहीं; कोई पूर्णता नहीं, कोई अपूर्णता नहीं-मात्र एक शून्यता। यदि तुम आते हो मुझ में तो तुम मुझे बिलकुल ही नहीं पाओगे वहां। मैंने स्वयं नहीं पाया, तो तुम कैसे पा सकते हो मुझे?
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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