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________________ सरमन ऑन दि माउंट' का कुछ हिस्सा पढ़कर सुनाऊं। और मैं देखूगा कि नान-इन क्या प्रतिक्रिया करता है। लोग कहते हैं कि वह बुद्ध-पुरुष इसलिए कैथोलिक पादरी नान-इन के पास गया और बोला, 'गुरुदेव, मैं ईसाई हूं और मेरे पास एक पुस्तक है जो मुझे प्यारी है। मैं इसमें से कुछ पढ़कर आपको सुनाना चाहूंगा, केवल यह जानने के लिए कि आप उसे कैसे प्रतिसंवेदित करते हैं, क्या प्रतिक्रिया दिखाते हैं।' उसने कुछ पंक्तियां 'दि सरमन ऑन दि माउंट' में से पढ़ी.......न्यू टेस्टामेंट से। और उसने उनका अनुवाद जापानी में किया क्योंकि नान-इन केवल जापानी समझ सकता था। जब उसने अनुवाद करना आरंभ किया, नान-इन का सारा चेहरा बिलकुल ही बदल गया। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे और वह बोला, 'ये बुद्ध के वचन हैं।' वह ईसाई पादरी कहने लगा, 'नहीं-नहीं, ये जीसस के वचन हैं।' नान-इन बोला, 'कोई बात नहीं, तुम जो नाम दे दो, मैं अनुभव करता हूं कि ये बुद्ध के वचन हैं क्योंकि मैं केवल बुद्ध को जानता हूं और ये वचन केवल बुद्ध के द्वारा आ सकते हैं। और यदि तुम कहते हो, ये जीसस के द्वारा आये हैं तो जीसस बुद्ध थे। इससे कुछ अंतर नहीं पड़ता है। तो मैं अपने शिष्यों से कहूंगा जीसस बौद्ध यही होगा बोध। यदि तुम दिव्य उपस्थिति को अनुभव करते हो तो फिर नाम नगण्य है। नाम तो अलग होंगे ही हर एक के लिए क्योंकि नाम शिक्षा द्वारा पहुंचते हैं, नाम सभ्यता द्वारा आते हैं, नाम जाति से आते हैं, जिससे तुम संबंधित होते हो। लेकिन अनुभव समाज से संबंध नहीं रखता। अनुभव तो किसी सभ्यता से संबंध नहीं रखता। अनुभव तुम्हारे कम्प्यूटर-मन से संबंधित नहीं है। वह तुम्हारा अपना ही है। इसलिए खयाल रहे, यदि तुम दृश्य देखते हो, तो वे कल्पनाएं हैं। लेकिन यदि तुम उपस्थिति को अनुभव करने लगते हो- आकारहीन, अस्तित्वगत अनुभूतियां; स्वयं को उनमें लपेट देते हो, उनमें विलीन हो जाते हो, उनमें घुल जाते हो और तब तुम वास्तव में संपर्क पा लेते हो। तुम उस उपस्थिति को जीसस कह सकते हो या तुम उस उपस्थिति को बुद्ध कह सकते हो। यह तुम पर निर्भर करता है,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जीसस बुद्ध हैं और बुद्ध क्राइस्ट हैं। वे, जो मन के पार चले गये हैं, व्यक्तित्व के भी पार चले गये हैं। आकार व स्वप्न के भी पार चले गये हैं। यदि जीसस और बुद्ध एक साथ खड़े हो जायें, तो वहां दो शरीर होंगे, पर आला एक ही। वहां दो शरीर होंगे, लेकिन दो मौजूदगिया नहीं; केवल मौजूदगी ही। यह ऐसा है जैसे कि तुम दो लैम्प एक कमरे में रख दो। लैम्प दो हैं, वे मात्र शरीर हैं, लेकिन प्रकाश एक है। तुम निर्धारित नहीं कर सकते कि यह प्रकाश इस लैम्प का है और वह प्रकाश उस लैम्प का है। प्रकाश मिल गये है। लैम्पों का भौतिक भाग अलग बना रहा है लेकिन अभौतिक भाग एक हो गया है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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