SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यान करने लगते हो, तो तुम इतने संवेदनशील हो जाते हो कि तुम स्वयं अपनी कल्पनाओं के शिकार हो सकते हो। और तुम्हारी कल्पनाएं बहुत वास्तविक लगेंगी। और इसे जांचने का कोई रास्ता नहीं है कि वे वास्तविक होती हैं या अवास्तविक। केवल एक प्रतिशत मामलों में यह काल्पनिक न होगा, लेकिन पता कैसे चले? उन एक प्रतिशत मामलों में वास्तव में वहां किसी धारणा की कोई छबि होगी ही नहीं। तुम यह अनुभव नहीं करोगे कि जीसस सूली पर चढ़े हुए तुम्हारे सामने खड़े हैं;तुम नहीं अनुभव करोगे कि कृष्ण तुम्हारे सामने खड़े हैं या तुम उनके सामने नाच रहे हो। तुम उनकी उपस्थिति को अनुभव करोगे, लेकिन कोई प्रतिमा न होगी, इसे ध्यान में रखना। तुम एक दिव्य उपस्थिति का अवतरण अनुभव करोगे। तुम किसी अज्ञात द्वारा भर जाओगे, लेकिन वह बिना किसी आकार का है। वहां नृत्य करते हुए कृष्ण न होंगे; सूली पर चढ़े हुए जीसस न होंगे और न सिद्धासन में बैठे हुए बुद्ध होंगे वहां। नहीं, वहां तो केवल एक उपस्थिति होगी। एक जीवंत उपस्थिति तुममें लहराती हुई-भीतर और बाहर। तुम उससे अभिभूत हो जाओगे, तुम उसकी अथाह जलराशि में उतर जाओगे। जीसस तुममें नहीं होंगे, तुम जीसस में होओगे यह होगा अंतर। कृष्ण प्रतिमा की तरह तुम्हारे मन में न होंगे, तुम कृष्ण में होओगे। लेकिन कृष्ण निराकार होंगे। वह एक अनुभव होगा, कल्पनात्मक धारणा नहीं। तब उसे कृष्ण क्यों कहा जाये? वहां कोई आकृति नहीं होगी। उन्हें जीसस क्यों कहा जाये? ये तो केवल प्रतीक हैं; भाषा-विज्ञान के प्रतीक हैं। तुम इस शब्द 'जीसस' के साथ घुल-मिल गये हो, इसलिए जब वह उपस्थिति तुममें भर जाती है और तुम उसका एक हिस्सा बन जाते होउसका एक आंदोलित हिस्सा, जब तुम उस महासागर की एक बूंद बन जाते हो, तो इसे व्यक्त कैसे करो? शायद तम्हारे लिए सबसे सुंदर शब्द हो. 'जीसस', या सबसे सुंदर शब्द होगा 'बुद्ध' या 'कृष्ण', ये शब्द मन में पलते रहे हैं इसलिए तुम कुछ निश्चित शब्द चुन लेते हो उस उपस्थिति को बताने के लिए। लेकिन वह उपस्थिति मात्र छाया नहीं है, वह स्वप्न नहीं है। वह कोई मनोछबि नहीं है। तुम जीसस का उपयोग कर सकते हो, तम कृष्ण का उपयोग कर सकते हो, तुम क्राइस्ट का उपयोग कर सकते हो या जो भी कोई नाम तुम्हें अच्छा लगे। जो भी नाम प्रीतिकर हो। यह तुम पर है। वह शब्द और वह नाम और वह रूप तुम्हारे मन से आयेगा, लेकिन वह अनुभव स्वयं अरूप है। वह कल्पना नहीं है। एक कैथोलिक पादरी एक झेन गुरु नान-इन से मिलने जा रहा था। नान-इन ने जीसस के बारे में कभी सुना नहीं था तो इस कैथोलिक पादरी ने सोचा, यह अच्छा होगा यदि मैं जाकर 'दि
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy