SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुम्हें उस तक नहीं ले जा सकता। लेकिन यदि तुम गैर-दुख में हो, तो आंतरिक आनंद बहना शुरू हो जाता है। आनंद वहां भीतर सदा से ही है। यह तुम्हारा निजी स्वभाव है। यह प्राप्त करने वाली या अर्जित करने वाली कोई चीज नहीं है। यह कहीं और पहुंचने और पाने की चीज नहीं है। तुम इसके साथ जन्मे हो; तुम्हारे पास यह है ही। यह अवस्था मिली हुई ही है। इसीलिए पतंजलि नहीं कहते कि मन तुम्हें दुख या आनंद में ले जा सकता है। नहीं, वे पूरे वैज्ञानिक हैं, बहुत परिशुद्ध हैं। वे एक भी शब्द ऐसा नहीं प्रयोग करेंगे जो तुम्हें कोई झूठी सूचना दे। वे सीधे ही कहते हैं कि या तो दुख में या गैर-दुख में। बुद्ध भी कई बार यही कहा था; जब-जब खोजी उनके पास आते और खोजी आनंद प्राप्त करने के पीछे ही पड़े होते हैं - वे बुद्ध से पूछते, 'हम आनंद तक कैसे पहुंच सकते हैं, परमआनंद तक?' वे कहते, 'मैं नहीं जानता। मैं तुम्हें केवल वह मार्ग दिखा सकता हूं जो गैर-पीड़ा तक ले जाता है, केवल दुख की अनुपस्थिति तक ले जाता है। मैं सुनिश्रित आनंद के बारे में कुछ नहीं कहता; नकारात्मक के बारे में ही कहता हूं। मैं तुम्हें संकेत दे सकता हूं कि गैर-दुख के संसार में कैसे रहा जाये।' इतना भर ही है जो विधियां कर सकती हैं। एक बार जब तुम गैर-पीड़ा की अवस्था में होते हो, आंतरिक आनंद बहने लगता है। लेकिन वह मन से नहीं आता, वह तुम्हारी आंतरिक सत्ता से आता है। इसलिए मन का आनंद से कुछ लेना-देना नहीं है। मन इसे निर्मित नहीं कर सकता है। यदि मन दुख में होता है, तब मन बाधा बन जाता है। यदि मन गैर-दुख में होता है, तब मन द्वार हो जाता है। लेकिन यह निर्माणकर्ता नहीं होता, यह कुछ कर नहीं रहा होता। तुम खिड़कियां खोलते हो और सूर्य की किरणें प्रवेश करती हैं खिड़कियां खोलने के द्वारा तुम सूर्य का निर्माण नहीं कर रहे होते। सूर्य वहां था ही यदि वह वहां नहीं होता, तब खिड़कियों को केवल खोल देने से किरणें प्रविष्ट न होतीं। पर तुम्हारी खिड़की रुकावट बन सकती है। हो सकता है बाहर सूर्य की किरणें हों, लेकिन खिडकी बंद है। खिडकी बाधा डाल सकती है या वह अंदर आने दे सकती है। वह राह बन सकती है, लेकिन वह निर्माणकर्त्री नहीं हो सकती । वह उन किरणों का निर्माण नहीं कर सकती। वे किरणें वहां हैं। तुम्हारा मन यदि दुखी होता है, तो बंद हो जाता है। ध्यान रहे, दुख का एक लक्षण बंदपन है। जब कभी तुम दुख में होते हो, तुम बंद हो जाते हो जब कभी तुम कोई व्यथा अनुभव करते हो, तुम संसार के प्रति बंद होते हो; अपने सबसे प्रिय मित्र तक के लिए भी तुम बंद होते हो। जब तुम दुख में होते हो तुम पली, अपने बच्चों, अपने प्रिय तक के लिए बंद होते हो, क्योंकि दुख तुम्हें भीतर एक सिकुडन देता है। तुम सिकुड़ते हो। हर ओर से तुम अपने द्वार बंद कर लिये होते हो।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy