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________________ पहली बात समझने की यह है कि मन शरीर से अलग कोई चीज नहीं है, इसे ध्यान में रखना मन शरीर का ही हिस्सा है। यह शरीर ही है, लेकिन गहरे स्वप्न से सूक्ष्म यह शरीर की एक अवस्था है, लेकिन बड़ी नाजुक, बड़ी परिष्कृत। तुम इसे पक्क नहीं सकते लेकिन शरीर के द्वारा तुम इस पर प्रभाव डाल सकते हो। यदि तुम नशा करते हो, यदि तुम एल एस डी लेते हो, या मारिजुआना या शराब या और कुछ लेते हो, तो तुरंत मन पर असर पड़ता है नशे की चीज शरीर में जाती है, मन में नहीं, लेकिन मन पर असर पड़ता है शरीर का सबसे सूक्ष्म हिस्सा है मन । इसके जो विपरीत है वह भी सत्य है। मन को प्रभावित करो और शरीर पर प्रभाव पड़ता है। सम्मोहन में यही कुछ होता है। एक व्यक्ति जो नहीं चल सकता, जो कहता है कि उसे पक्षाघात हुआ है, सम्मोहन के अंतर्गत चल सकता है। तुम्हें पक्षाघात नहीं हुआ, लेकिन यदि सम्मोहन के अंतर्गत यह कहा जाता है कि तुम्हारे शरीर को अब पक्षाघात हो गया है, तो तुम चल नहीं सकोगे। और पक्षाघाती व्यक्ति सम्मोहन के अंतर्गत चल सकता है। क्या हो रहा है? सम्मोहन मन में जाता है, सम्मोहन संकेत मन में जाता है। तब शरीर भी पीछे चल पड़ता है। सबसे पहली बात समझनी होगी मन और शरीर दो नहीं है। यह पतंजलि की सबसे गहरी खोजों में से एक खोज है। अब आधुनिक विज्ञान तक भी इसे मान्यता देता है। लेकिन पश्चिम में यह ज्ञान बिलकुल नया है। अब वे कहते हैं कि शरीर और मन के विभाजन की बात करना ठीक नहीं है। वे कहते हैं कि यह 'साइकोसोमैटिक' है; यह मनः शारीरिक है। ये दोनों शब्द एक घटना के दो कार्य भर है। एक छोर मन है दूसरा छोर शरीर है, अत: तुम एक को बदलने के लिए किसी दूसरे पर कार्य कर सकते हो। शरीर के पास क्रिया के पांच अवयव हैं-पांच इंद्रियां, क्रिया के पांच उपकरण मन की पांच वृतियां हैं, क्रिया के पांच स्वप्न मन और शरीर एक हैं। शरीर पांच क्रियाओं में बंटा हुआ है, मन भी पांच क्रियाओं में बंटा हुआ है। हम हर क्रिया के विस्तार में जायेंगे। इस सूत्र के संबंध में दूसरी बात यह है कि मन की क्रियाएं क्लेश का स्रोत भी हो सकती हैं और अक्लेश का भी मन की ये पांच वृत्तियां, मन की यह समग्नता तुम्हें गहरी वेदना में पहुंचा सकती हैं। पहुंचा सकती हैं दुख में, पीड़ा में। और यदि तुम मन का, इसकी क्रियात्मकता का उपयोग ठीक ढंग से करते हो, तो ये तुम्हें गैर-दुख में भी ले जा सकती हैं। गैर-दुख शब्द बड़ा अर्थपूर्ण है। पतंजलि नहीं कहते कि मन तुम्हें आनंद में ले जायेगा, परमआनंद में ले जायेगा नहीं । यह तुम्हें दुख में ले जा सकता है यदि तुम इसका गलत ढंग से उपयोग करते हो, यदि तुम इसके गुलाम बन जाते हो लेकिन यदि तुम मालिक बन जाओ, तो यह मन तुम्हें गैर-दुख में ले जा सकता है, आनंद में नहीं। क्योंकि आनंद तुम्हारा स्वभाव ही है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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