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________________ इसीलिए दुख में लोग आत्महत्या की बात सोचने लगते हैं। आत्महत्या का मतलब है संपूर्ण बंदपन। किसी संवाद की कोई संभावना ही नहीं है, किसी द्वार की कोई संभावना नहीं। एक बंद दरवाजा भी खतरनाक होता है। कोई इसे खोल सकता है, इसलिए दरवाजे को ही नष्ट कर दो। सारी संभावनाओं को नष्ट कर दो। आत्महत्या का अर्थ है- अब मैं किसी भी द्वार-दरवाजे के खुलने की सारी संभावनाओं को नष्ट करने जा रहा हूं। अब मैं स्वयं को संपूर्णतया बंद कर रहा हूं। जब कभी तुम दुख में होते हो, तुम आत्महत्या की सोचना शुरू कर देते हो। जब तुम खुश होते हो, तुम आत्महत्या की बात सोच तक नहीं सकते। तुम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। लोग आत्महत्या क्यों करते हैं, तुम इस बारे में सोच तक नहीं सकते। जीवन इतना सुख देने वाला है, जीवन एक गहरा संगीत है, तो भी लोग अपना जीवन नष्ट क्यों कर लेते हैं? यह असंभव लगता है। ऐसा क्यों है कि जब तुम खुश होते हो तब आत्महत्या असंभव लगती है? क्योंकि तुम खुले होते हो। जीवन तुममें प्रवाहित होता है। जब तुम प्रसन्न हो, तब तुम्हारे पास कहीं बड़ी आत्मा होती है, तब आत्मा फैलती है जब तुम अप्रसन्न होते हो, तुम्हारे पास कहीं छोटी आला होती है, एक सिकुड़न होती है। जब कोई अप्रसन्न होता है, तब उसका स्पर्श करो, उसका हाथ अपने हाथ में लो। तुम अनुभव करोगे कि उसका हाथ मरा हुआ है। उसके द्वारा कुछ नहीं बह रहा है। कोई प्रेम नहीं, कोई ऊआ नहीं। वह मात्र ठण्डा है, जैसे कि वह किसी लाश का हाथ हो। लेकिन जब कोई प्रसन्न होता है और तुम उसका हाथ हुओ, वहां कुछ संप्रेषित होता है ऊर्जा बह रही है उसका हाथ मरा हुआ हाथ भर नहीं है, उसका हाथ एक पुल बन गया है। उसके हाथ द्वारा कोई ऊर्जा तुम तक आ है, संचारित होती है, जुड़ती है। ऊध्या बहती है; तुम तक पहुंचती है। वह तुममें बहने का हर प्रयत्न करता है और तुम्हें भी अपने में बहने देता है। जब दो व्यक्ति प्रसन्न होते हैं, वे एक हो जाते हैं। इसीलिए प्रेम में एकल घटित होता है और प्रेमी सोचने लगते हैं कि वे दो नहीं हैं। वे दो होते हैं, और वे महसूस करने लगते हैं कि वे दो नहीं हैं क्योंकि प्रेम में वे इतने खुश होते है कि पिघलाव घटित हो जाता है। वे एक दूसरे में पिघलने लगते हैं, वे एक दूसरे में बहने लगते हैं। सीमाएं टूट जाती है, परिभाषाएं धुंधला जाती हैं और वे नहीं जानते कि कौन कौन है उस घड़ी में वे एक हो जाते हैं। जब तुम खुश होते हो, तुम दूसरों में बह सकते हो और तुम दूसरों को भी स्वयं में बहने देते हो। यही है उत्सव का अर्थ। जब तुम हर एक को स्वयं में बहने देते हो और तुम हर एक में बहते हो, तुम जीवन का उत्सव मना रहे होते हो। और उत्सव सबसे बड़ी प्रार्थना है, ध्यान का सबसे ऊंचा शिखर ।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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