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________________ पतंजलि कहते हैं, 'उस पर ध्यान केंद्रित करो जो वीतरागता को उपलब्ध हो चुका है।' सद्गुरु खोजना; सद्गुरु को समर्पण करना। उसके प्रति एकाग्र रहना। उसे सुनना, देखना, खाना और पीना। उसे प्रवेश करने दो तुममें, अपने हृदय को उससे आपूरित होने दो। जल्दी ही तुम यात्रा पर चल पड़ोगे, क्योंकि तुम्हारे ध्यान का विषय अंततः तुम्हारे जीवन का लक्ष्य बन जाता है। और सजग दर्शन एक रहस्यपूर्ण संबंध है। एकाग्र ध्यान द्वारा तुम तुम्हारे ध्यान का विषय बन जाते हो। कृष्णमूर्ति कहे जाते हैं, 'द्रष्टा दृश्य बन जाता है।' वे ठीक हैं। जो कुछ तुम ध्यान से देखते हो, तुम वही बन जाओगे। इसलिए सचेत रहना। सजग रहना। कोई ऐसी चीज मत देखने लगना ध्यान से, जो तुम होना ही न चाहते हो। क्योंकि जो तुम देखते हो वही तुम्हारा लक्ष्य होता है। तुम बीज बो रहे होते हो। वीतरागी के निकट रहना, उस व्यक्ति के जो सारी आकांक्षाओं के पार जा चुका है। उस ाक्ते के सान्निध्य में रहना जिसके पास यहां पूरा करने को अब कुछ नहीं रहा; जो परिपूर्ण हो चुका। उसकी वही पूर्णता ही तुम्हें आप्लावित कर देगी, और वह एक उद्यरक बन जायेगा। वह कुछ भी नहीं करेगा। क्योंकि वह व्यक्ति जो आकांक्षातीत है, कुछ नहीं कर सकता है। वह तुम्हारी मदद भी नहीं कर सकता क्योंकि मदद भी एक आकांक्षा ही है। उससे बहुत ज्यादा मदद मिलती है, फिर भी वह नहीं करता है तुम्हारी मदद। उत्प्रेरक बन जाता है कुछ किये बिना ही। यदि तुम उसे आने देते हो, वह तुम्हारे हृदय में उतर आता है। और उसकी वही मौजूदगी तुम्हें जोड़ देती है, एक बना देती है। आज इतना ही। प्रवचन 20 - प्रथम ही अंतिम है दिनांक 10 जनवरी; 1975 श्री रजनीश आश्रम पूना।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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