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________________ यह भी! सभी विकल्प पतंजलि तम्हें दे रहे हैं। वीतराग वह है, जो सारी आकांक्षाओं के पार जा चुका होता है-उस पर भी ध्यान करो। महावीर, बुद्ध, पतंजलि या वह जो तुम्हारी पसंद होजरथुस्र, मोहम्मद, क्राइस्ट या कोई भी, जिसके प्रति तुम लगाव और प्रेम अनुभव करते हो। उस पर ध्यान केंद्रित करो, जो आकांक्षाओं-इच्छाओं के पार जा चुका हो। तुम्हारे सद्गुरु पर ध्यान केंद्रित करो, जो इच्छाओं के पार जा चुका है। यह कैसे मदद देगा? यह बात मदद देती है, क्योंकि जब तुम ध्यान करते हो उसका जो आकांक्षाओं के पार जा चुका होता है, तो वह तुम्हारे भीतर एक चुंबकीय शक्ति बन जाता है। तुम उसे तुम्हारे भीतर प्रवेश करने देते हो; वह तुम्हें तुम्हारे से बाहर खींचता है। यह बात उसके प्रति तुम्हारा खुलापन बन जाती है। यदि तुम ध्यान करते हो उस पर जो आकांक्षाओं के पार जा चुका होता है, तो तुम देर-अबेर उसी की भांति हो जाओगे। क्योंकि ध्यान तुम्हें ध्यान की विषयवस्तु की भांति ही बना देता है। यदि तुम ध्यान लगाते हो धन पर, तो तुम धन की भांति हो जाओगे। जाओ और देखो किसी कंजूस कोउसके पास अब आत्मा नहीं बची है। उसके पास केवल बैंक-बैलेंस है; भीतर कुछ नहीं है उसके। यदि तुम ध्यान से सुनो, तुम सिर्फ सुनोगे नोटों, रुपयों की आवाज। तुम न सुन पाओगे हृदय की किसी धड़कन को। जिस किसी पर तुम अपना ध्यान देते हो, उसी की भांति हो जाते हो। अत: जागरूक रहना। किसी ऐसी चीज पर ध्यान मत देना जिसकी भांति तम होना ही न चाहते हो। केवल उसी चीज पर ध्यान देना जिसकी भांति तुम होना चाहते हो, क्योंकि यही है प्रारंभ। बीज बो दिया गया है, ध्यान सहित, और जल्दी ही वह वृक्ष बन जायेगा। तुम नरक के बीज बोते हो और जब वे वृक्ष बन जाते हैं तब तुम पूछते हो, 'मैं इतना दुखी क्यों हूं?' तुम हमेशा गलत चीज पर ध्यान लगाते हो, तुम हमेशा उसकी ओर देखते हो जो नकारात्मक है। तुम हमेशा ध्यान देते हो, दोषों पर, तब तुम दोषपूर्ण हो जाते हो। दोष पर ध्यान मत देना। सुंदर पर देना ध्यान। क्यों गिनना कांटों को? क्यों नहीं देखते फूलों को? क्यों गिनना रातों को?क्यों नहीं महत्व देते दिनों को? यदि तुम केवल रातों को ही गिनते हो, तब दो रातें होती है, और केवल एक ही दिन होता है इन दोनों के बीच। यदि तुम दिनों को महत्व देकर उनकी गणना करते हो, तब दो दिन होते हैं और उन दोनों के बीच केवल एक ही रात्रि होती है। और इससे बहुत अंतर पड़ता है। यदि तुम प्रकाश होना चाहते हो तो प्रकाश की ओर देखना। अंधेरे की ओर देखना यदि तुम्हें अंधकार ही होना हो तो।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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