SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐसा केवल तभी किया जा सकता है जब तुमने संवेदनक्षमता की एक निश्चित गुणवत्ता प्राप्त कर ली होती है। तब आंखें बंद कर सकते हो और पा सकते हो उस अग्रि कों-हृदय के पास की वह सुंदर अग्रिशिखा-एक नीला प्रकाश। लेकिन बिलकुल अभी तो तुम उसे नहीं देख सकते। वह है वहां; वह सदा से ही है वहां। जब तुम मरते हो, तब वह नीला प्रकाश तुम्हारे शरीर से बाहर चला जाता है। लेकिन तुम उसे नहीं देखते तब क्योंकि जब तुम जीवित थे तब नहीं देख सकते थे उसे। और दूसरे भी नहीं देख पायेंगे कि कोई चीज बाहर जा रही है, लेकिन सोवियत रूस में किरलियान ने बहुत संवेदनशील फिल्म द्वारा तस्वीरें उतारी हैं। जब कोई व्यक्ति मरता है तब कुछ घटता है उसके चारों ओर। कोई जीवऊर्जा, कोई प्रकाश जैसी चीज छूट जाती है, चली जाती है और तिरोहित हो जाती है ब्रह्मांड में। प्रकाश सदा है वहां; वह तुम्हारे अस्तित्व का केंद्र बिंदु है। यह हृदय के समीप होता है एक नीली ज्योति के रूप में। जब तुम्हारे पास संवेदनशीलता हो तब तुम देख सकते हो तुम्हारे चारों ओर के सुंदर संसार को-जब तुम्हारी आंखें साफ होती हैं। फिर तुम उन्हें बंद कर लेते हो और हृदय के ज्यादा करीब बढ़ते हो। तुम जानने का प्रयत्न करते हो, वहां क्या है। पहले तो तुम अंधकार अनुभव करोगे। यह ऐसा है जैसे कि तम किसी गर्मी के दिन बाहर के तेज प्रकाश से कमरे के भीतर आ जाओ,और तुम अनुभव करो कि हर चीज अंधकारमयी है। लेकिन प्रतीक्षा करना। अंधकार के साथ आंखों को समायोजित होने दो, और जल्दी ही तुम देखने लगोगे घर की चीजों को। तुम लाखों जन्मों से बाहर ही रहे हुए हो। जब पहली बार तुम भीतर आते हो तो वहां अंधकार के और शून्यता के सिवाय कुछ नहीं होता। लेकिन प्रतीक्षा करना। थोड़ा समय लगेगा इसमें। कुछ महीने भी लग सकते हैं, लेकिन प्रतीक्षा करना। आंखें बंद कर लेना और भीतर झांकना हृदय में। अकस्मात एक दिन यह घटता है-तुम देख लेते हो प्रकाश को, उस ज्योति को। तब एकाग्रता करना उस अग्रि की ज्योति पर। और कुछ इससे ज्यादा आनंदमय नहीं। और कुछ भी ज्यादा नृत्यपूर्ण और गानपूर्ण नहीं है। और कुछ भी तुम्हारे हृदय के भीतर के इस अंतर प्रकाश से ज्यादा संगतिपूर्ण या सुसंगत नहीं होता है। और जितने ज्यादा तुम एकाग्र होते हो, उतने ज्यादा हो जाते हो शांतिमय, मौन, प्रशांत, एकजुट। फिर तुम्हारे लिए कहीं कोई अंधकार नहीं रहता। जब तुम्हारा हृदय प्रकाश से भरा होता है, तो समस्त लोक प्रकाश से भरा होता है। इसीलिए 'अंतस के प्रकाश पर भी ध्यान करो, जो उज्जवल और शांत है और सभी दुखों के बाहर।' या, जो वीतरागता को उपलब्ध हो चुका है उसका ध्यान करो।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy