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________________ जब ध्यान से अतींद्रिय संवेदना उत्पन्न होती है तो मन आत्मविश्वास प्राप्त करता है और इसके कारण साधना का सातत्य बना रहता है। विशोका वा ज्योतिष्मह।।। 36।। उस आंतरिक प्रकाश पर भी ध्यान करो, जो शांत है और सभी दुखों के बाहर है। वीतरागविषय वा चितम्।। 37।। या, जो वीतरागता को उपलब्ध हो चुका हो उसका ध्यान करो। आनंदित व्यक्ति के प्रति मैत्री दुखी व्यक्ति के प्रति करुणा पुण्यवान के प्रति मुदिता तथा पापी के प्रति उपेक्षा-इन भावनाओं का सवर्धन करने से मन शांत हो जाता है। - - इससे पहले कि तुम इस सूत्र को समझो, बहुत सारी चीजें समझ लेनी है। पहली, स्वाभाविक मनोवृत्ति-जब कभी तुम किसी को प्रसन्न देखते हो, तो तुम अनुभव करते हो ईर्ष्या-प्रसन्नता नहीं, प्रसन्नता हरगिज नहीं। तुम दुखी अनुभव करते हो। यह है स्वाभाविक मनोवृत्ति। यह अभिवृत्ति तुम्हारे पास पहले से ही है। और पतंजलि कहते हैं मन शांत हो जाता है प्रसन्न के प्रति मित्रता का भाव करने से। यह बहुत कठिन होता है। जो प्रसन्न है उसके साथ मैत्रीपूर्ण होना जीवन की सर्वाधिक कठिन बातों में से एक है। साधारणतया तुम सोचते हो, यह बहुत सरल है। यह सरल नहीं है। ठीक इसके विपरीत है अवस्था। तुम ईर्ष्या अनुभव करते हो, तुम दुखी अनुभव करते हो। हो सकता है तुम प्रसन्नता दर्शाओ, लेकिन वह मात्र एक ऊपरी बात होती है; एक दिखावा, एक मुखौटा होती है। कैसे प्रसन्न हो सकते हो तुम? कैसे हो सकते हो तुम शांत, मौन, यदि तुम्हारी ऐसी भावावस्था हो तो? सारा जीवन उत्सव है, सारे संसार भर में लाखों प्रसन्नताएं घटित हो रही हैं, लेकिन यदि तुम्हारी मनोवृत्ति ईर्ष्या की है तो तुम दुखी होओगे, तुम सतत एक नरक में होओगे। और तुम ठीक
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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