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________________ नरक में होओगे क्योंकि सब ओर स्वर्ग है। तुम स्वयं के लिए एक नरक निर्मित कर लोगे-स्व निजी नरक - क्योंकि सारा अस्तित्व उत्सव मना रहा है। रा। र्युइाउड्_द कोई प्रसन्न होता है तो सबसे पहले तुम्हारे मन में क्या बात आती है? ऐसा होता है जैसे कि प्रसन्नता तुमसे ले ली गयी हो, जैसे कि वह जीत गया और तुम हार गये हो, जैसे कि उसने तुम्हें छल लिया हो। प्रसन्नता कोई प्रतियोगिता नहीं है, अत: चिंतित मत होना । यदि कोई प्रसन्न होता है, इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम प्रसन्न नहीं हो सकते कि उसने ले ली तुम्हारी प्रसन्नता इसलिए अब तुम प्रसन्न नहीं हो सकते। प्रसन्नता कहीं एक जगह अस्तित्व नहीं रखती। अतः यह प्रसन्न व्यक्तियों द्वारा खअ नहीं की जा सकती है। तुम क्यों अनुभव करते हो ईर्ष्या ? यदि कोई धनवान है, हो सकता है तुम्हारे लिए धनवान होना कठिन हो, क्योंकि धन-दौलत परिमाण में विद्यमान होती है। यदि कोई व्यक्ति भौतिक ढंग से शक्तिशाली है, तो शायद तुम्हारे लिए कठिन हो शक्तिशाली होना क्योंकि शक्ति के लिए प्रतियोगिता होती है। लेकिन प्रसन्नता कोई प्रतिर्याप्ताता नहीं है। प्रसन्नता अस्तित्व रखती है अपरिसीम मात्रा में। कोई व्यक्ति कभी इसे समाप्त करने के योग्य नहीं हुआ कोई प्रतियोगिता बिलकुल ही नहीं है। यदि कोई व्यक्ति प्रसन्न होता है तो क्यों तुम ईर्ष्या अनुभव करते हो? और ईर्ष्या के साथ नरक तुममें प्रवेश करता है। पतंजलि कहते है, जब कोई व्यक्ति प्रसन्न हो, तो प्रसन्नता अनुभव करो, मैत्रीपूर्ण अनुभव करो। तब तुम्हारे स्वयं में तुम भी द्वार खोलते हो प्रसन्नता की ओर। जो प्रसन्न होता है उसके प्रति तुम अगर मैत्रीपूर्ण अनुभव कर सकते हो, तो सूक्ष्म ढंग से तुरंत तुम उसकी प्रसन्नता में हिस्सेदार बनने लगते हो, वह तुम्हारी भी हो जाती है। तत्क्षण ही और प्रसन्नता कोई ऐसी चीज नहीं है कि कोई उससे चिपका रह सके। तुम उसे बांट सकते हो। जब एक फूल खिलता है, तो तुम उसमें हिस्सेदार बन सकते हो। जब कोई पक्षी चहचहाता है, तुम उसमें हिस्सा ले सकते हो। जब कोई व्यक्ति प्रसन्न होता है, तो तुम उसमें हिस्सा ले सकते हो। और इसका सौंदर्य ऐसा है कि यह उस व्यक्ति के बांटने पर निर्भर नहीं करता है। यह तुम्हारे उसमें सम्मिलित होने पर निर्भर है। यदि यह उसके बांटने पर निर्भर करता, इस पर कि वह बांटता है या नहीं, तब यह कोई बिलकुल ही अलग बात होती। हो सकता है वह बांटना पसंद न करे। लेकिन इसका तो बिलकुल कोई सवाल ही नहीं, यह उसके बांटने पर निर्भर नहीं करता है जब प्रातः सूर्योदय होता है तो तुम प्रसन्न हो सकते हो, और सूर्य इस विषय में कुछ नहीं कर सकता है। वह तुम्हें प्रसन्न होने से रोक नहीं सकता है। कोई प्रसन्न है, तुम मैत्रीपूर्ण हो सकते हो। यह समयरूपेण तुम्हारा अपना भाव है, और
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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