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________________ जब तुम आंदोलित होते हो, तब ऊर्जा तुम्हारे भीतर निर्मित हो जाती है। ऊर्जा अधिक ऊर्जा को खींचती है। पात्र हो जाओ-शून्य पात्र, और फिर आपूरित हो जाओ, पूरी तरह आप्लावित। जब तुम अनुभव करते हो कि अब यह बहुत हुआ, असह्य है,कि जलधार बहुत ज्यादा हुई और तुम और ज्यादा इसे सह नहीं सकते, तो धरती की ओर झुक जाओ, धरती को चूम लो और मौन हुए रही जैसे कि तुम धरती में ऊर्जा उंडेल रहे हो। आकाश से ग्रहण करो; वापस दे दो धरती को। तुम बीच में केवल माध्यम बन जाओ। पूर्णतया झुक जाओ, फिर से खाली हो जाओ। जब तुम अनुभव करो कि अब तुम खाली हो, तो तुम अनुभव करोगे-बहुत मौन, बहुत शांत, बहुत सहज। फिर दोबारा अपने हाथ उठा लो। ऊर्जा को अनुभव करो। नीचे झुको और चूम लो जमीन को-ऊर्जा को वापस धरती को लौटा दो। ऊर्जा है आकाश, ऊर्जा है धरती। वे दो प्रकार की ऊर्जाएं हैं। आकाश सर्वदा पुरुष-तत्व कहलाता है क्योंकि वह देता है, और धरती सर्वदा स्त्री-तत्व कहलाती है क्योंकि वह ग्रहण करती है। वह है गर्भ की भांति। अत: ग्रहण करो आकाश से और दे दो धरती को। और ऐसा सात बार करना है, इससे कम नहीं, क्योंकि हर बार ऊर्जा तुम्हारे शरीर के किसी एक चक्र में आयेगी। और सात चक्र होते हैं। हर बार ऊर्जा तुममें ज्यादा गहरे चली जायेगी; तुम्हारे भीतर वह ज्यादा गहरे तलों को अनुप्राणित करेगी। सात बार करना जरूरी है। इससे कम नहीं; क्योंकि यदि तुम कम बार करते हो तो सो न पाओगे। ऊर्जा वहां होगी भीतर और तुम बेचैनी अनुभव करोगे। इसे सात बार दोहराना। तुम अधिक भी कर सकते हो। ज्यादा करने में कोई हानि नहीं है, लेकिन कम नहीं। ऐसा सात बार या इससे ज्यादा बार करना। और जब तुम पूर्णतया खाली अनुभव करो तब सो जाना। तुम्हारी संपूर्ण रात्रि एक अंतस घटना बन जायेगी। नींद में तुम अधिकाधिक शांत हो जाओगे। सपने समाप्त हो जायेंगे। सुबह, तुम पूर्णतया नये जीवन को उठता हुआ अनुभव करोगे, जैसे कि तुम पुनजर्वित हुए हो। तुम अब वही पुराने न रहे। अतीत गिर चुका है; तुम ताजे और युवा हो। हर रात ऐसा करना। तीन महीने के भीतर बहुत सारी चीजें संभव हो जायेंगी। तुम खुले होओगे। और तब तुम दूसरों को खोल सकते हो। तीन महीने तक खोलने की इस घटना को क्रियान्वित करने के बाद तुम किसी के पास खड़े होने और स्वयं को खोलने के बिलकुल योग्य हो जाओगे। और तुरंत तुम अनुभव करोगे कि दूसरा कंपायमान हो रहा है, आंदोलित हो रहा है। चाहे दूसरा जानता भी न हो, दूसरे के जाने बिना भी तुम किसी को खोल सकते हो। लेकिन ऐसा करना मत क्योंकि दूसरा तो सिर्फ घबड़ा ही जायेगा। वह सोचेगा कि कुछ भयावह घट रहा है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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