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________________ हैं यह घटता है। किंतु बापाक सुबुद कभी कोई व्याख्या नहीं करता। वह उस ढंग का आदमी नहीं है। वह कहता है, 'तुम सिर्फ ऐसा करो। इसकी फिक्र मत लेना कि ऐसा क्यों घटता है। बस यह घटता वही कुछ यहां घटता है। कोई एक खुलता है। अकस्मात ऊर्जा उसके चारो और गतिमान हो उठती है, वह एक वातावरण निर्मित कर देती है। तुम उसके निकट हो, और अचानक तुम ऊर्जा के एक उमडाव को ऊपर उठता अनुभव करते हो। आंसू बहने लगते हैं, तुम्हारा हृदय भरा हुआ है। तुम खुलते हो, तब तुम दूसरे को मदद देते हो। यह बात एक शृंखला बद्ध प्रतिक्रिया बन जाती है। सारा संसार खुल सकता है। और एक बार तुम खुले हुए हो जाते हो, तब तुम इसका गुर जान लेते हो। यह कोई विधि न रही। तुम इसका गुर ही जान लेते हो। तब तुम अपने मन को एकदम रख देते हो एक निशित स्थिति में; तुम रख देते हो अपनी स्व-सत्ता को एक निश्चित ढंग में। यही है जिसे मैं कहता हं प्रार्थना। मेरे लिए प्रार्थना कोई शाब्दिक संवाद नहीं है ईश्वर के साथ। कैसे तुम भाषा को साथ लिये संपर्क कर सकते हो ईश्वर के साथ? दिव्यता की कोई भाषा नहीं होती। और जो कुछ भी कहते हो तुम, वह समझ में नहीं आयेगा। तुम्हें भाषा द्वारा नहीं समझा जा सकता है, बल्कि तुम्हारे अस्तित्व दवारा समझा जा सकता है। अंतस अस्तित्व ही है एकमात्र भाषा। एक छोटी प्रार्थना-विधि आजमाना। रात्रि में, जब तुम सोने जा रहे होते हो, बस घुटने टेक बैठ जाना बिस्तर के समीप। बिजली बुझा देना, अपने दोनों हाथ उठा लेना, आंखें बंद रहें, और मात्र करना जैसे तम किसी झरने तले हो, आकाश से उतरती ऊर्जात्मक जलधार तले। प्रारंभ में यह बात एक परिकल्पना होती है। दो या तीन दिनों के भीतर तम अनुभव करने लगोगे कि यह एक वास्तविक घटना है। जैसे कि तुम वास्तव में ही जलधार तले हो; और तुम्हारा शरीर आंदोलित होने लगता है। तुम तेज हवा के झोंके में पड़े पत्ते की भांति अनुभव करते हो। और वह जलधार इतनी सशक्त और प्रबल होती है कि तुम उसे भीतर सम्हाल नहीं सकते। यह तुम्हारे रोएं-रोएं को आपूरित करती है, सिर से लेकर पांव तक। तो तुम एक खाली पात्र ही होते हो, और वह तुम्हें पूरी तरह से भरने लगती है। जब तुम कम्पन्नों को अपने तक पहुंचता अनुभव करते हो, तो उसके साथ सहयोग देना। कम्पन्नों को ज्यादा होने में मदद देना, क्योंकि जितने ज्यादा तुम आंदोलित होते हो, तुममें असीम ऊर्जा उतर आने की उतनी ही ज्यादा संभावना होती है। क्योंकि तुम्हारी अपनी अंतरऊर्जा सक्रिय हो जाती है। जब तुम सक्रिय होते हो, तुम सक्रिय शक्ति से मिल सकते हो। जब तुम गतिहीन होते हो, तब तुम सक्रिय शक्ति से नहीं मिल सकते।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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