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________________ दमनात्मक है, यदि तुम बीमार हो तो एलोपैथी तुरंत बीमारी का दमन करती है। तब बीमारी कोई और कमजोर स्थल आजमाती है जहां से उभर सके। फिर किसी दूसरी जगह से यह फूट पड़ती है। तब तुम इसे वहां दबाते हो, तो फिर यह किसी और जगह से फूट पड़ती है। एलोपैथी के साथ, तुम एक बीमारी से दूसरी बीमारी तक पहुंचते जाते हो, दूसरी से तीसरी तक, और एक कभी न खअ होने वाली प्रक्रिया होती है। आयुर्वेद की अवधारणा पूर्णत: अलग ही होती है। अस्वस्थता को दबाना नहीं चाहिए, यह मक्त की जानी चाहिए। रेचन की जरूरत होती है। बीमार आदमी को आयुवेदिक दवा दी जाती है इसलिए कि बीमारी बाहर आ जाये और फेंकी जाये। यह एक रेचन होता है। इसलिए हो सकता है कि प्रारंभिक आयुर्वेद की खुराक की मात्रा तुम्हें और ज्यादा बीमार कर दे, और इसमें बहुत लंबा समय लग जाता है क्योंकि यह कोई दमन नहीं है। यह बिलकुल अभी कार्य नहीं कर सकती-यह एक लंबी प्रक्रिया होती है। बीमारी को फेंक देना होता है, और तुम्हारी आंतरिक ऊर्जा को एक समस्वरता बन जाना होता है ताकि स्वस्थता भीतर से उमग सके। दवाई बीमारी को बाहर फेंकेगी और स्वास्थदायिनी शक्ति उसका स्थान भरेगी तुम्हारे अपने अस्तित्व से आयी स्वस्थता दवारा। आयुर्वेद और योग एक साथ विकसित हुए। यदि तुम योगासन करते हो, यदि तुम पतंजलि का अनुसरण करते हो तो कभी मत जाना एलोपैथिक डॉक्टर के पास। यदि तुम पतंजलि का अनुसरण नहीं कर रहे, तब कोई समस्या नहीं है। लेकिन यदि तुम अनुसरण कर रहे हो योग-प्रणाली का और तुम्हारी देह-ऊर्जा की बहुत सारी चीजों पर कार्य कर रहे हो, तो कभी मत जाना एलोपैथी की ओर क्योंकि दोनों विपरीत हैं। तब ढूंढना किसी आयुवेदिक डॉक्टर को या होम्योपैथी या प्राकृतिक चिकित्सा को खोज लेना-कोई ऐसी चीज जो विरेचन में मदद करे। लेकिन यदि बीमारी है तो पहले उससे जूझ लेना। बीमारी के साथ रहना मत। मेरी विधियों के साथ यह बहुत सरल होता है बीमारी से छुटकारा पा लेना। पतंजलि की ओम् की विधि, जाप करने की और ध्यान करने की, वह बहुत मद् है, सौम्य है। लेकिन उन दिनों वह पर्याप्त सशक्त थी क्योंकि लोग सीधे-सच्चे थे। वे प्रकृति के साथ जीते। अस्वस्थता असामान्य बात थी,स्वास्थ्य सामान्य बात थी। अब बिलकुल विपरीत है अवस्था-स्वस्थता है असामान्य और अस्वस्थता है सामान्य। और लोग हैं बहुत जटिल, वे प्रकृति के करीब नहीं रहते। लंदन में एक सर्वेक्षण हुआ। एक लाख लड़के-लड़कियों ने गाय नहीं देखी थी। उन्होंने केवल तस्वीरें ही देखी हुई थीं गाय की। धीरे- धीरे, हम मनुष्य निर्मित संसार के चौखटे में बंध जाते हैंकंकरीट की इमारतें, तारकोल की सड़के, टेक्यालॉजी, बड़ी मशीनें, कारें, सब मनुष्य निर्मित चीजें हैं। प्रकृति कहीं अंधकार में फेंक दी गयी है। और प्रकृति है एक उपचार-शक्ति। तो आदमी अधिकाधिक जटिल होता जाता है। वह अपने स्वभाव की नहीं सुनता है। वह सुनता है सभ्यता की मांगों
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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