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________________ बीमार होते हो, तुम्हें दूसरे की आवश्यकता होती है, और दूसरे को भी तुम्हारी आवश्यकता होती है जब वह बीमार होता है या वह बीमार होती है। और दो बीमार व्यक्तियों के मिलने पर बीमारी दुगुनी ही नहीं होती, वह कई गुना बढ़ जाती है। ऐसा ही विवाह में घटता है-दो बीमार व्यक्तियों का मिलन बीमारी को कई गुना बढ़ा देता है और फिर सारी बात ही कुरूप हो जाती है। और एक नरक बन जाता है। बीमार व्यक्तियों को दूसरों की जरूरत होती है। और वे ठीक वही व्यक्ति हैं जो मुसीबत खड़ी कर देंगे जब वे संबंधित हो जायें तो। एक स्वस्थ व्यक्ति को आवश्यकता नहीं है। यदि स्वस्थ व्यक्ति प्रेम करता है, तो यह कोई आवश्यकता नहीं होती है, यह परस्पर बांटना। सारी घटना बदल जाती है। उसे किसी की जरूरत नहीं रहती। उसके पास इतना ज्यादा है कि वह बांट सकता एक बीमार व्यक्ति को जरूरत होती है कामवासना की, स्वस्थ व्यक्ति तो प्रेम करता है। और प्रेम समग्र रूपेण अलग बात है। और जब दो स्वस्थ व्यक्ति मिलते हैं, तो स्वस्थता कई गुना बढ़ जाती है। तब वह परम सत्य को पाने में एक-दूसरे के सहायक बन जाते हैं। वह परम सत्य के लिए एक साथ मिलकर कार्य कर सकते हैं, परस्पर सहायता करते हुए। लेकिन मांग समाप्त हो जाती है, यह अब कोई निर्भरता न रही। जब कभी तुम्हें कोई अशुविधाजनक अनुभूति हो स्वयं के साथ, तो इसे कामवासना में और विषयासक्ति में इबोने की कोशिश मत करना। बल्कि और ज्यादा स्वस्थ होने की कोशिश करना। योगासन मदद करेंगे। हम बाद में उनकी चर्चा करेंगे जब पतंजलि उनकी बात कहें। अभी तो वे कहते हैं, यदि तुम ओम् का जाप और उसी का ध्यान करो, तो रोग तिरोहित हो जायेगा। और वे सही न ही केवल रोग जो कि वहां था वही तिरोहित हो जायेगा, बल्कि वह रोग भी जो भविष्य में आने को था, वह भी तिरोहित हो जायेगा। यदि आदमी एक संपूर्ण जाप बन सकता है जिससे कि जाप करने वाला पूर्णतया खो जाये, यदि वह केवल एक शदध चेतना बन सकता है-प्रकाश की एक अग्निशिखा-और चारों ओर होता है जाप ही जाप, तो ऊर्जा एक वर्तुल में उतर रही होती है। तो वह एक वर्तुल ही बन जाती है। और तब तुम्हारे पास होता है जीवन का सबसे अधिक सुखात्मक क्षणों में से एक क्षण। जब ऊर्जा एक वर्तुल में उतर रही होती है और एक आंतरिक समस्वरता बन जाती है तो कोई विसंगति नहीं रहती, कोई संघर्ष नहीं होता। तुम एक हो गये होते हो। लेकिन साधारणतया भी, रोग एक बाधा बनेगा। यदि तुम बीमार हो, तो तुम्हें इलाज की आवश्यकता होती है। पतंजलि की योग-प्रणाली और चिकित्सा-शाख की हिन्दू-प्रणाली, आयुर्वेद, साथ-साथ इकट्ठी विकसित हुईं। आयुर्वेद समग्रतया विभिन्न है एलोपैथी से। एलोपैथी रोग के प्रति दमनात्मक होती है। एलोपैथी ईसाइयत के साथ ही साथ विकसित हई;यह एक उप-उअत्ति है। और क्योंकि ईसाइयत
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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