SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बुद्ध और महावीर के समय में यह समपरूपेण विभिन्न बात थी। अब हर एक को सिखाया जाता है व्यक्ति होना, स्वयं अपने बल पर होना, स्वयं में विश्वास करना। आस्था कठिन बात हो गयी है। आज्ञापरायणता संभव नहीं रही। यदि कोई बिना पूछे अनुसरण कर लेता है, तो तुम समझते हो, वह अधानुयायी है। वह निदित हो जाता है। तो अब केवल वह गुरु ही जिसके पास सारी व्याख्याएं हैं-जितनी तुम्हें चाहिए उससे ज्यादा, जो तुम्हें पूरी तरह थका सके, तुम्हारी मदद कर सकता है। तुम पूछते चले जाओ-वह दिये जा सकता है उत्तर। एक घड़ी आती है जब तुम पूछने से थक जाते हो, और तुम कहते हो, 'ठीक, मैं अनुसरण करूंगा।' पहले कभी ऐसा न था। बात सीधी-सरल थी। जब महावीर ने कहा था, 'यह करो', हर एक ने किया था। लेकिन अब यह संभव नहीं क्योंकि आदमी ही इतना अलग हो गया है। आधुनिक मन विद्रोही मन है, और तुम इसे बदल नहीं सकते। विकास क्रम ने इसे इसी तरह का बना दिया है और कुछ गलत नहीं है इसमें। इसीलिए पुराने गुरु मार्ग से अलग पड़ रहे हैं। कोई नहीं सुनता उनकी। तुम जाओ उनके पास। उनके पास आदेश हैं सुंदर आदेश, लेकिन वे कोई व्याख्या देते नहीं हैं, और पहली चीज ही व्याख्या होती है। अनुदेश तो तर्कसरणी के साथ ही पीछे आना चाहिए। पहले सारा स्पष्टीकरण, सारी व्याख्याएं दे दी जानी चाहिए, और तब गुरु कह सकता है, 'इसीलिए यह करना है।' ___यह लम्बी प्रक्रिया है, लेकिन ऐसी ही है। कुछ नहीं किया जा सकता। और एक अर्थ में यह सुंदर विकास है, क्योंकि जब तुम मात्र आस्था रखते हो, तो तुम्हारी आस्था में कोई त्वरा नहीं होती, कोई तीव्रता नहीं होती। तुम्हारी आस्था में कोई तीखापन नहीं होता। वह एक मिली-जुली खिचडीनुमा चीज होती है- आकारविहीन। किसी रंगरूप का विन्यास नहीं होता; इसमें कोई रंग नहीं होता। यह मात्र धुंधली होती है। लेकिन जब तुम संदेह कर सको, जब तुम तर्क कर सको, और सोचविचार कर सको और गुरु तुम्हारे सारे तर्को को, विवादों को और संदेहों को संतुष्ट कर सकता हो, तब उदित होती है आस्था जिसका कि अपना एक सौदर्य होता है क्योंकि इसे उपलब्ध किया गया है संदेह की पृष्ठभूमि से। सारे संदेहों के विपरीत इसे उपलब्ध किया है, सारी चुनौतियों के विरुद्ध इसे पाया गया है। यह बात एक संघर्ष बनी रही है। यह कोई सीधी या सस्ती बात नहीं थी; यह मूल्यवान बात बनी रही है। और जब तुम कुछ प्राप्त करते हो लंबे संघर्ष के बाद,तो उसका एक अपना ही अर्थ होता है। यदि तुम इसे सड़क पर ही पा लेते हो, जब यह वहां पड़ा ही होता है और तुम इसे घर ले जाते हो, तो इसका कोई सौदर्य नहीं होता। यदि कोहिनूर संसार भर में पड़े होते, तो कौन फिक्र करता उन्हें घर ले जाने की?यदि कोहिनूर मात्र एक साधारण पत्थर होता कहीं भी पड़ा हुआ, तो कौन करता परवाह? पुराने समय में आस्था उन कंकड़-पत्थरों की भांति थी जो सारी पृथ्वी पर पड़े रहते हैं। अब यह होती है एक कोहिनूर। अब इसे होना होता है कोई कीमती उपलब्धि। आदेश काम न देंगे। गुरु को अपने स्पष्टीकरण में, व्याख्या में इतने गहरे जाना होता है कि वह तम्हें थका देता है। इसलिए मैं
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy