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________________ तुमसे कभी नहीं कहता कि मत पूछो। वस्तुत: विपरीत है अवस्था। मैं तुमसे कहता हूं पूछो और तुम्हें प्रश्न मिलते नहीं हैं। ____ मैं तुम्हारे अचेतन से सारे संभव प्रश्न ले जाऊंगा बाहरी तल तक, और मैं उन्हें सुलझा दूंगा। कोई तुमसे न कह पायेगा कि तुम अधानुगामी हो। और मैं तुम्हें एक भी अनुदेश नहीं दूंगा, तुम्हारे तर्क को, बुद्धि को पूरी तरह संतुष्ट किये बिना-नहीं;क्योंकि वह बात किसी तरह तुम्हें मदद नहीं देने वाली। निर्देश दिये जाते है गुरुओं के गुरु द्वारा, लेकिन वे होते है मात्र उद्धृत शब्द-सूत्र : 'यह करो, वह मत करो।' नये युग में यह बात काम न देगी। आदमी अब इतना बुद्धिवादी हो गया है कि चाहे तुम अतर्कमयता ही सिखा रहे हो तो भी तुम्हें इसके बारे में तर्कयुक्त होना होता है। यही कर रहा हूं मैं तुम्हें सिखा रहा हूं असंगत, अतार्किक, तुम्हें सिखा रहा हूं कुछ गढ़ बात-और तर्क द्वारा। तुम्हारे तर्क का, बुद्धि का इतना ज्यादा प्रयोग कर लेना है कि तुम स्वयं जागरूक हो जाओ कि यह व्यर्थ है, तो तुम फेंक दो इसे। तुम्हारे तर्क के बारे में तुमसे इतना ज्यादा कहना होता है कि तुम इसके साथ थककर चूर हो जाते हो। तुम गिरा देते हो इसे स्वयं ही; किसी निर्देश द्वारा नहीं। निर्देश दिये जा सकते है, लेकिन तुम चिपक जाओगे। वे काम न देंगे। मैं तुमसे नहीं कहने वाला कि, 'केवल आस्था रखो मुझ पर।' मैं संपूर्ण स्थिति का निर्माण कर रहा हूं जिसमें कि तुम कुछ और कर ही न सको। तुम्हें रखनी ही होगी आस्था। इसमें समय लगेगा। थोड़ा ज्यादा समय; तब चली आयेगी सीधी-सरल आज्ञापरायणता। लेकिन यह मूल्यवान होगी। तीसरा प्रश्न: हम अपनी मूर्छित और अहंकारप्रस्त अवस्था में हमेशा गुरु के संपर्क में नहीं होते लेकिन क्या गुरु हमेशा हमारे साथ संपर्क में होता है? हा, क्योंकि गुरु तुम्हारी चारों परतों के साथ संपर्क रखता है। तुम्हारी चेतन परत मात्र एक है चार परतों में से। लेकिन यह तभी संभव है जब तुमने समर्पण कर दिया हो और उसे अपने गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया हो, उससे पहले यह संभव नहीं। यदि तुम मात्र एक विदयार्थी होते हो, सीख रहे होते हो, तब जब तुम संपर्क में होते हो तभी गुरु संपर्क में होता है; जब तुम संपर्क में नहीं होते तब वह भी संपर्क में नहीं होता।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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