SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तो न जीतने की संभावना सदा वहां होती है क्योंकि यह एक बहुत जटिल घटना है। यह उतनी सरल नहीं जितनी कि दिखती है। लेकिन यदि तुम जुआ खेलते जाते हो, तो एक दिन यह घटित होना ही है। यदि तुम एक बार चूक जाओ तो निराश मत होना, क्योंकि बुद्ध को भी बहुत बार चूकना होता है। यदि तुम चूकते हो, तो बस फिर जुट जाना और जोखम उठा लेना। कभी किसी अज्ञात ढंग से सारा अस्तित्व आ पहुंचता है तुम्हारी सहायता देने को किसी समय, किसी अज्ञात ढंग से, तुमने एकदम ठीक समय लक्ष्य साधा होता है जब द्वार खुला था। लेकिन तुम्हें बहुत बार लक्ष्य पर चोट करनी होती है। तुम्हारे चैतन्य का तीर तुम्हें फेंकते चले जाना होता है। परिणाम की चिंता मत लेना। बहुत घना अंधेरा है और लक्ष्य निर्धारित नहीं है, यह परिवर्तित होता रहता है। इसलिए तुम्हें तुम्हारा तीर अंधेरे में फेंकते जाना होता है कई बार चूकोगे तुम और मैं तुमसे यह कहता हूं ताकि तुम निराश न हो जाओ। हर कोई चूकता है बहुत बार यह बात ही कुछ ऐसी है लेकिन यदि तुम आगे बढ़ते जाते हो और बढ़ते जाते हो और बढ़ते जाते हो, बिना निराश हुए, तो घटना घटेगी। यह सदा घटी है इसीलिए असीम धैर्य की जरूरत है। परमात्मा के प्रति समर्पण है क्या? कैसे कर सकते हो तुम समर्पण? कैसे संभव होगा समर्पण? वह भी संभव हो जाता है यदि तुम बहुत प्रयत्न करते हो, और चूकते चले जाते हो, और फिर भी बहुत प्रयास करते हो। तुम स्वयं पर निर्भर करते हो। प्रयास स्वयं पर निर्भर करता है। यह संकल्प शक्ति पर आधारित होता है-संकल्प के मार्ग पर तुम स्वयं पर निर्भर करते हो। तुम असफल और असफल और असफल होते हो तुम फिर खड़े होते हो, तुम गिरते हो, तुम फिर खड़े होते हो, और तुम फिर चलना शुरू कर देते हो और फिर एक क्षण आता है, तुम्हारे बहुत चूकने और असफल होने के बाद, जब तुम समझ जाते हो कि तुम्हारा प्रयास ही इसका कारण है क्योंकि तुम्हारा प्रयास तुम्हारा अहंकार बन चुका है। संकल्प के मार्ग पर यही समस्या है। क्योंकि वह व्यक्ति जो संकल्प के मार्ग पर कार्य कर रहा है, प्रयास कर रहा है, विधियों का, तरकीबों का प्रयोग कर रहा है, यह कर रहा है, वह कर रहा है, वह एक निश्चित बोध एकत्र कर लेने को विवश होता है कि मैं हूं-मैं श्रेष्ठ हूं विशिष्ट हूं असाधारण हूं। मैं इतना उतना सब कर रहा हूं-तपस्या, उपवास, साधना कर रहा हूं। मैंने इतना अधिक कर लिया। संकल्प के मार्ग पर व्यक्ति को अहंकार के प्रति बहुत - बहुत सजग होना होता है, क्योंकि अहंकार तो अवश्य ही चला आयेगा। यदि तुम अहंकार पर ध्यान दे सको, यदि तुम अहंकार संचित न करो, तो समर्पण की कोई जरूरत नहीं। क्योंकि यदि अहंकार नहीं रहता, तो समर्पण करने को कुछ है नहीं इसे बहुत-बहुत गहरे रूप से समझ लेना है और जब तुम समझने की कोशिश कर रहे हो पंतजलि को समझने की तो यह एक बुनियादी बात है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy