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________________ और बिलकुल तिरोहित हो जाते हो प्रार्थना प्रेम की भांति है। वस्तुतः इस योग शब्द का अर्थ है ही मिलन, घनिष्ठता, दो का मिलन और यह इतना गहन और प्रगाढ़ और सच्चा मिलन है कि दो मिट जाते हैं। सीमाएं धुंधला जाती हैं और केवल एक का अस्तित्व बना रहता है। यह बात किसी दूसरी तरह से हो नहीं सकती। यदि तुम वास्तविक और प्रगाढ़ नहीं हो, तो तुम्हारी समय सत्ता को जुटाओ। केवल तभी परम सत्य की संभावना होती है। तुम्हें संपूर्ण रूप से स्वयं का जोखम उठाना होता है; इससे कम चलेगा नहीं । 'प्रयास की मात्रा के अनुसार सफलता की संभावनाएं विभिन्न होती हैं।' यह एक मार्ग हैसंकल्पशक्ति का मार्ग | पतंजलि मूल रूप से संकल्प के मार्ग से संबंध रखते हैं। लेकिन वे जा हैं, वे सजग हैं कि दूसरे मार्ग का भी अस्तित्व है, इसलिए वे बस एक टिप्पणी, एक सूत्र देते हैं। वह सूत्र है : ईश्वरप्रणिधानाद्वा। सफलता उन्हें भी उपलब्ध होती है जो ईश्वर के प्रति समर्पित होते हैं। यह मात्र एक टिप्पणी है सिर्फ यह सूचित करने के लिए दी गयी है कि दूसरा मार्ग भी है वहां योग संकल्प का मार्ग है। प्रयास, जो प्रगाढ़ है, वास्तविक है, समग्र है तुम्हारी समग्रता इस तक ले आओ। लेकिन पतंजलि जागरूक हैं। और जो जानते हैं वे सब दूसरे मार्ग के प्रति जागरूक होते हैं। और पतंजलि बहुत ध्यान देने वाले विचारशील हैं। वे बहुत वैज्ञानिक मन के हैं वे एक भी बचाव का रास्ता नहीं छोड़ेंगे। लेकिन वह दूसरा मार्ग उनका मार्ग नहीं है, तो वे मात्र एक टिप्पणी दे देते हैं यह याद दिलाने को ही कि दूसरा मार्ग है 'ईश्वरप्रणिधानादद्वा । सफलता उन्हें भी उपलब्ध होती है जो ईश्वर के प्रति समर्पित होते हैं।' : चाहे मार्ग प्रयास का हो या समर्पण का, बुनियादी बात एक ही है - समग्रता की जरूरत होती है। मार्ग भेद रखते हैं, लेकिन वे पूर्णतया विभिन्न नहीं हो सकते। उनका प्रकार, उनका स्वरूप, उनकी दिशाएं अलग हो सकती हैं, लेकिन उनका भीतरी अर्थ और महत्व एक ही रहता है क्योंकि दोनों दिव्यता की ओर ले जाते हैं। प्रयास में तुम्हारी समग्रता ही की जरूरत है। इसलिए मेरे देखे केवल एक मार्ग है, और वह वही है जिसमें तुम्हारी समग्रता तुम्हें ले आनी होती है। चाहे तुम इसे प्रयास द्वारा लाओ जो है योग - यह तुम पर निर्भर है; या चाहे तुम इसे समर्पण द्वारा लाओ। समर्पण स्वयं को ढीला छोड़ना यह भी तुम पर निर्भर है। लेकिन हमेशा ध्यान रहे कि समग्रता की जरूरत होगी, तुम्हें संपूर्णतया स्वयं को दांव पर लगा देना होगा। यह एक दाव है, अशांत के साथ एक जुआ और कोई नहीं कह सकता: यह कब घटेगा, कोई भविष्यवाणी नहीं सकता। कोई तुम्हें गारंटी नहीं दे सकता। तुम जुआ खेलते हो, शायद तुम जीत जाओ, शायद तुम न
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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