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________________ यदि तुम बहुत वर्ष सतत प्रयास करते हो, तो अहंकार खड़ा होगा ही। तुम्हें जागरूक होना होता है। तुम्हें काम करना है,तुम्हें सारे प्रयत्न करने हैं, लेकिन अहंकार इकट्ठा मत करो। फिर कोई जरूरत नहीं रहती समर्पण करने की। तुम समर्पण किये बिना लक्ष्य साध सकते हो। तब कोई जरूरत नहीं क्योंकि बीमारी रही नहीं। यदि अहंकार होता है, तो समर्पण करने की आवश्यकता उठ खड़ी होती है। इसीलिए पतंजलि प्रगाढ़ता, सच्चाई, समग्र प्रयास पर बोलने के पश्चात अकस्मात वे कहते हैं, 'ईश्वरप्रणिधानाद्वासफलता उन्हें भी उपलब्ध होती है जो ईश्वर के प्रति समर्पित होते हैं।' यदि तुम अनुभव करते हो कि तुम निरंतर असफल हो रहे हो, तो ध्यान रखना कि असफलता परमात्मा के कारण नहीं है। असफलता घट रही है तुम्हारे अहंकार के कारण। वहां, जहां से बाण फेंका जा रहा है, तुम्हारे अस्तित्व का स्रोत, वहां कुछ घट रहा है-एक भटकन। अहंकार वहां एकत्रित हो रहा है। तब केवल एक संभावना रहती है-इसे समर्पित कर देना। तुम इसमें इतने समग्र रूप से असफल हो चुके हो, कई ढंग से। तुमने यह किया, वह किया, तुमने कुछ न कुछ करने की कोशिश की, और तुम असफल और असफल और असफल हुए। जब निराशा गहनतम हो जाती है और तुम नहीं समझ सकते कि क्या करना है, तो पतंजलि कहते हैं, अब ईश्वर को समर्पित हो जाओ।' इस अर्थ में पतंजलि बहुत अनूठे हैं। वे ईश्वर में विश्वास नहीं करते; वे आस्तिक नहीं हैं। ईश्वर भी एक उपाय है। पतंजलि किसी ईश्वर में विश्वास नहीं करते; वे नहीं विश्वास करते कि कोई ईश्वर है। नहीं, वे कहते हैं, 'ईश्वर एक विधि है। वे जो असफल होते हैं, उनके लिए यह अंतिम विधि है।' यदि तुम इसमें भी चूक जाते हो, तो कोई मार्ग नहीं। पतंजलि कहते हैं कि ईश्वर है या नहीं, सवाल यह नहीं है। यह तो बिलकुल ही कोई विवाद का विषय नहीं। सार यह है कि ईश्वर परिकल्पित है। बिना ईश्वर के समर्पण करना कठिन होगा। तुम पूछोगे, 'किसे करें समर्पण?' अत: ईश्वर एक परिकल्पित बिंदु होता है मात्र तुम्हें समर्पण में सहायता देने को। जब तुम समर्पण कर चुके, तुम जानोगे कि कोई ईश्वर नहीं। लेकिन जब तुम समर्पण कर चुके होते हो और जब तुमने जान लिया होता है तब ऐसा होता है। पतंजलि के लिए ईश्वर भी तुम्हारी सहायता करने वाली एक परिकल्पना है। यह एक झूठ है। इसीलिए मैंने तुमसे कहा था कि पतंजलि एक चालाक गुरु हैं। यह है मात्र एक सहायता। बुनियादी बात समर्पण है, ईश्वर नहीं। और तुम्हें इस भेद को ध्यान में रख लेना है। क्योंकि ऐसे लोग हैं जो सोचते हैं कि ईश्वर बुनियादी बात है; कि ईश्वर है, इसलिए तुम समर्पण करते हो। पतंजलि कहते हैं कि तुम्हें समर्पण करना है इसलिए ईश्वर को मान लो। ईश्वर मान ली गयी बात है। जब तुमने समर्पण कर दिया हो, तुम हंसोगे। ईश्वर है नहीं।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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