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________________ श्रद्धामय व्यक्ति किसी शत्रु को नहीं जानता। श्रद्धावान केवल मित्र को जानता है। जिस किसी रूप में वह आये उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। यदि वह चुराने आता है तो वह मित्र है; यदि वह कुछ ले जाने को आता है तो वह मित्र है; -यदि वह देने आता है, तो वह मित्र है-जिस किसी रूप में भी वह आये। ___ ऐसा हुआ कि अलहिल्लाज मंसूर-स्व बड़ा रहस्यवादी, एक महान सूफी, उनका कत कर दिया गया, उन्हें मार डाला गया। जिस समय वे आसमान की ओर देखने लगे, उनके अंतिम शब्द थे, 'तुम मुझे धोखा नहीं दे सकते।' बहुत लोग थे वहां, और अलहिल्लाज मुसकुरा रहे थे। वे आसमान की ओर देखकर कहते थे, 'तुम मुझे धोखा नहीं दे सकते। 'तो किसी ने पूछा, 'तुम्हारा मतलब क्या है? किससे बातें कर रहे हो तुम?' वे बोले 'मैं अपने ईश्वर से बातें कर रहा हूं। जिस किसी रूप में तुम आते हो, तुम मुझे धोखा नहीं दे सकते। मैं तुम्हें खूब जानता हूं। अब तुम मौत की तरह आये हो। तुम मुझे धोखा नहीं दे सकते। ' ___ एक श्रद्धावान व्यक्ति धोखा नहीं पा सकता है। जो कुछ आता है, जिस किसी रूप में, उस तक हमेशा परमात्मा रहा है क्योंकि श्रद्धा हर चीज को पावन बना देती है। श्रद्धा एक कीमिया है। यह केवल तुम्हें ही रूपांतरित नहीं करती, यह तुम्हारे लिए सारे संसार को रूपांतरित कर देती है। जहां कहीं तुम देखते हो, तुम 'उसे' ही पाते हो-मित्र में, शत्रु में, दिन में, रात में। हां, हेराक्लतु सही है। परमात्मा ग्रीष्म और शीत है, दिन और रात है, परमात्मा परितृप्ति है और भूख है। यह है श्रद्धा। पतंजलि श्रद्धा को आधार बना देते हैं-सारे विकास का आधार। 'आप विश्वास से श्रदधा की ओर बढ़ने की कहते हैं.।' विश्वास वह है जो दिया जाता है; श्रद्धा वह है जो पायी जाती है। विश्वास तुम्हारे माता-पिता द्वारा दिया जाता है, श्रद्धा तुम्हारे द्वारा पायी जाती है। विश्वास समाज द्वारा दिया जाता है;श्रद्धा की तलाश तुम्हें करनी होती है; खोजना होता है और इसके बारे में पता लगाना होता है। श्रद्धा व्यक्तिगत होती है,आंतरिक होती है, विश्वास उपयोगी वस्तु की भांति होता है। इसे तुम बाजार से खरीद सकते हो। जब मैं ऐसा कहता हूं तो मैं इसे बहुत समझ कर कहता हूं। तुम जाकर मुसलमान बन सकते हो; तुम जाकर हिंदू बन सकते हो। आर्य समाज में जाओ और तम एक हिंदु में परिवर्तित किये जा सकते हो। कोई कठिनाई नहीं। विश्वास बाजार में खरीदा जा सकता है। मुसलमान से तुम हिंदू बन सकते हो; हिदू से तुम जैन बन सकते हो। यह इतना आसान है कि कोई भी नासमझ पंडित-पुरोहित कर सकता है। लेकिन श्रद्धा कोई वस्तु नहीं है। तुम जाकर इसे बाजार में नहीं पा सकते, तुम इसे खरीद नहीं सकते। तुम्हें बहुत सारे अनुभवों में से गुजरना पड़ता है। धीरे-धीरे यह उदित होती है; धीरे-धीरे यह तुम्हें परिवर्तित करती है। एक नयी गुणवत्ता, एक नयी ज्योति तुम्हारे अस्तित्व में आ पहुंचती है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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