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________________ तुम आस्था रखते हो। और आस्था तुम्हें असुरक्षित बना देती है लेकिन परम विजेता भी, क्योंकि कोई तुम्हें हरा नहीं सकता। वे धोखा दे सकते हैं, वे चुरा सकते हैं। हो सकता है तुम भिखारी बन जाओ, पर फिर भी तुम सम्राट रहोगे। श्रद्धा भिखारियों को सम्राट बना देती है और संदेह सम्राटों को भिखारी बना देता है। जरा किसी सम्राट को तो देखो; वह श्रद्धा नहीं कर सकता, वह सदा ही भयभीत रहता है। वह अपनी पत्नी पर आस्था नहीं रख सकता, वह अपने बच्चों पर आस्था नहीं रख सकता, क्योंकि एक सम्राट इतने अधिक का स्वामी होता है कि बेटा उसे मार डालेगा, पत्नी उसे जहर दे देगी। वह किसी पर भरोसा नहीं रख सकता। वह इतने संदेह से भरा है, वह पहले से ही नरक में है। अगर वह सोता भी है, तो वह आराम नहीं कर सकता। कौन जानता है कि क्या घटनेवाला है! श्रद्धा तुम्हें ज्यादा और ज्यादा खुला बना देती है। निस्संदेह, जब तुम खुले होते हो, तो बहुत सारी चीजें संभव हो जायेंगी। जब तुम खुले होते हो तो मित्र तुम्हारे हृदय तक पहुंचेंगे, लेकिन निस्संदेह शत्रु भी तुम्हारे हृदय तक पहुंच पायेंगे। द्वार खुला है। अत: दोनों संभावनाएं हैं। यदि तुम सुरक्षित होना चाहते हो, तो पूरी तरह दरवाजा बंद कर दो। सांकल लगा दो और भीतर छिप जाओ। अब कोई शत्रु नहीं आ सकता, लेकिन कोई मित्र भी नहीं आ सकता। अगर परमात्मा भी आ जाये, तो वह प्रवेश नहीं कर सकता। अब कोई तुम्हें धोखा नहीं दे सकता, लेकिन सार क्या? तुम कब में हो। तुम मरे ही हुए हो। कोई तुम्हें मार नहीं सकता, बल्कि तुम पहले से ही मरे हुए हो; तुम बाहर नहीं आ सकते। तुम सुरक्षा में जीते हो निस्संदेह ही, पर किस प्रकार का है यह जीवन? तुम बिलकुल ही नहीं जीते। फिर तुम द्वार खोलते हो। संदेह है द्वार का बंद करना; श्रद्धा है द्वार का खोलना। जब तुम द्वार खोलते हो, तो कई विकल्प संभव हो जाते हैं। मित्र प्रवेश कर सकते हैं, शत्र प्रवेश कर सकते हैं। हवा बह आयेगी, फूलों की सुगंध ले आयेगी। लेकिन यह रोग के कीटाणु भी ले आयेगी। अब हर चीज संभव है- अच्छी और बरी। प्रेम आयेगा, घृणा भी आयेगी। अब परमात्मा आ सकता है और शैतान भी आ सकता है। डर यह है कि हो सकता है कुछ गलत हो जाये, तो बंद करो द्वार। लेकिन फिर हर चीज गलत हो जाती है। द्वार खोलो तो संभावना हो सकती है कि कोई चीज गलत हो जाये, लेकिन तुम्हारे लिए कुछ गलत नहीं, यदि तुम्हारी श्रद्धा समग्र है तो। शत्रु में भी तुम मित्र पा लोगे और शैतान में भी तुम ईश्वर पा लोगे। श्रद्धा एक ऐसा रूपांतरण है कि तुम बुरा पा ही नहीं सकते क्योंकि तुम्हारा सारा दृष्टिकोण ही बदल गया है। यही है जीसस के कथन का अर्थ, 'अपने शत्रुओं से प्रेम करो।' तुम कैसे अपने शत्रुओं से प्रेम कर सकते हो? यह एक उलझन में डालने वाली समस्या रही है ईसाई धर्मविदों के लिए एक गूढ पहेली। कैसे तुम अपने शत्रु से प्रेम कर सकते हो?लेकिन एक श्रद्धावान यह कर सकता है क्योंकि
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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