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________________ जब तुम देखते हो कि संदेह दुख है, तो आती है श्रद्धा। जब तुम देखते हो कि विश्वास मृत है, तब आती है श्रद्धा। यदि तुम एक ईसाई हो, एक हिंदू हो, एक मुसलमान हो, तो क्या तुमने ध्यान दिया कि तुम बिलकुल मर गये हो? किस तरह के ईसाई हो तुम? अगर तुम वास्तव में ईसाई हो, तो तुम क्राइस्ट होओगे उससे जरा भी कम नहीं। श्रद्धा तुम्हें क्राइस्ट बना देगी,विश्वास बनायेगा तुम्हें ईसाई और वह एक बहुत दरिद्र विकल्प है। किस तरह के ईसाई हो तुम? तुम चर्च जाते, तुम बाइबिल पढ़ते, इसलिए तुम ईसाई हो? तुम्हारा विश्वास कोई अनुभूति नहीं है। यह एक अज्ञान है। ऐसा हुआ कहीं रोटरी क्लब में, कि एक बड़ा अर्थशास्त्री बोलने को आया। वह अर्थशास्त्र की खास भाषा में बोला। नगर का एक पादरी भी उपस्थित था उसे सुनने को। भाषण के पश्चात, वह उसके पास आया और बोला, 'यह एक सुंदर भाषण था जो आपने दिया, लेकिन स्पष्ट कहूं तो मैं एक शब्द भी नहीं समझ सका। 'वह अर्थशास्त्री बोला, 'इस स्थिति में आपसे मैं वहीं कहंगा जो आप कहते हो अपने श्रोताओं से-विश्वास रखो।' जब तुम नहीं समझ सकते, जब तुम अज्ञानी होते हो, तो सारा समाज कहता है, 'विश्वास रखो।' मैं तुमसे कहूंगा झूठा विश्वास रखने से तो संदेह करना बेहतर है। संदेह करना बेहतर है, क्योंकि संदेह दुख निर्मित करेगा। विश्वास एक सांत्वना है;संदेह दुख निर्मित करेगा। और अगर दुख होता है तो तुम्हें श्रद्धा खोजनी ही पड़ेगी। यही है समस्या, दुविधा, जो संसार में घटी है विश्वास के ही कारण। श्रद्धा को किस तरह खोजना होता है, यह तुम भूल चुके हो। विश्वास के कारण तुम श्रद्धाहीन बन गये हो। विश्वास के कारण तुम लाशें ढोते रहते हों-तुम ईसाई हो, हिंदू हो, मुसलमान हो, और सोचते हो कि तुम धार्मिक हो! तब खोज रुक जाती है। ईमानदार संदेह बेहतर होता है बेईमान विश्वास से। तुम्हारा विश्वास मिथ्या है। और सारे विश्वास बनावटी हैं, अगर तुम इसमें विकसित नहीं हुए, अगर यह तुम्हारी अनुभूति नहीं, तुम्हारा आस्तित्व नहीं और तुम्हारा अनुभव नहीं। सारे विश्वास झूठे हैं। ईमानदार होओ। करो संदेह। दुख उठाओ। केवल दुख तुम्हें समझ तक ले आयेगा। अगर तुम सच ही दुख उठाते हो, तो एक न एक दिन तुम समझ जाओगे कि यह संदेह है, जो तुम्हें दुखी बना रहा है। और फिर रूपांतरण संभव हो जाता है। तुम मुझसे पूछते हो, 'मन जो संदेह से विश्वास तक झूलता रहता है तो इन दो छोरों के पार जाने के लिए उस मन का उपयोग कैसे करें?' तुम इसका उपयोग नहीं कर सकते, क्योंकि तुमने कभी ईमानदारी से संदेह किया ही नहीं। तुम्हारा विश्वास झूठा है, संदेह गहरे तल पर छिपा हुआ है। मात्र सतह पर विश्वास का रंग-रोगन होता है। गहरे तल पर तुम संदेहपूर्ण होते हो। लेकिन यह जानने में तुम्हें भय होता है कि तुम संदेहवादी हो, अत: तुम विश्वास से चिपके रहते हो, तुम विश्वास के कृत्य किये चले जाते हो। तुम
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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