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________________ भारतीय योगियों से बात करो और तुम देखोगे, वे सारे संसार की निंदा कर रहे हैं। वे कहते हैं, पश्चिम भौतिकवादी है;केवल भारत आध्यात्मिक है। सारा संसार भौतिकवादी है, वे कहते हैं। जैसे कि यह कोई एकाधिकार है! और वे इतने अंधे हैं, वे इस तथ्य को नहीं देख पाते कि वास्तविकता एकदम विपरीत है। जितना ज्यादा मैं भारतीय और पश्चिमी मन को देखता रहा हूं उतना ज्यादा अनुभव करता रहा हं कि पश्चिमी मन कम भौतिकवादी है भारतीय मन से। भारतीय मन ज्यादा भौतिकवादी है। यह चीजों से ज्यादा चिपका रहता है। यह बांट नहीं सकता;यह कंजूस है। पश्चिम ने इतनी ज्यादा भौतिक संपन्नता निर्मित कर ली है इसका मतलब यह नहीं है कि पश्चिम भौतिकवादी है। और भारत गरीब है तो इसका यह अर्थ नहीं है कि भारत अध्यात्मवादियों का देश है। अगर गरीबी आध्यात्यिकता होती है तो नपंसकता ब्रह्मचर्य होगी। नहीं, गरीबी आध्यात्मिकता नहीं है; न ही संपन्नता भौतिकता है। भौतिकवादिता चीजों से संबंध नहीं रखती, यह अभिवृत्तियों से संबंध रखती है। न ही आध्यात्मिकता गरीबी से संबंधित होती है; यह अंतर से संबंध रखती है-उनसे संबंध रखती है जो अनासक्त हैं, बांटने वाले हैं। भारत में तुम किसी को कोई चीज बांटते हुए नहीं पा सकते। कोई परस्पर बांट नहीं सकता, हर कोई जमा करता रहता है। और चूंकि वे ऐसे जमाखोर हैं,इसीलिए वे गरीब हैं। थोडे-से लोग बहुत अधिक संचय करते हैं, इसलिए बहुत सारे लोग गरीब हो जाते हैं। पश्चिम आपस में बांटता रहा है। इसीलिए सारा समाज गरीबी से अमीरी तक उन्नत हआ है। भारत में, थोड़े-से लोग अत्यधिक धनवान हो गये हैं। तुम ऐसे धनवान लोग कहीं और पा नहीं सकते लेकिन थोड़े-से इने-गिने। और सारा समाज स्वयं को गरीबी में घसीटता रहता है, और अंतर भारी है। तुम कहीं इतना अंतर नहीं पा सकते। एक बिड़ला और एक भिखारी के बीच का अंतर बहत बड़ा है। ऐसा अंतर कहीं नहीं बना रह सकता और कहीं विदयमान है भी नहीं। पश्चिम में धनवान व्यक्ति हैं,पश्चिम में गरीब व्यक्ति हैं, पर अंतर इतना बड़ा नहीं है। यहां तो अंतर असीम ही है। तुम ऐसे भेद की कल्पना नहीं कर सकते। यह कैसे संयुक्त किया जा सकता है? यह परस्पर जोड़ा नहीं जा सकता क्योंकि लोग भौतिकवादी हैं। वरना यह भेद हो ही कैसे सकता है? क्यों है यह अंतर? क्या तुम बांट नहीं सकते? यह असंभव होता है। लेकिन भारतीय अहंकार कहता है कि संसार,सारा संसार भौतिकवादी है। ऐसा हआ है क्योंकि लोग पतंजलि की ओर और उन लोगों की ओर आकर्षित थे, जो कठिन विधियां दे रहे थे। पतंजलि के साथ कुछ गलत नहीं है, लेकिन भारतीय अहंकार ने सुंदर, सूक्ष्म बहाना खोज लिया अहंकारी होने के लिए।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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