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________________ यही तुम्हारे साथ घट रहा है। पतंजलि तुम्हें जंचते हैं क्योंकि वे कठिन हैं। हेराक्लत् 'बालशिक्षण' है क्योंकि वह इतना सरल है! सरलता अहंकार को कभी नहीं जंचती। लेकिन ध्यान रहे, यदि सरलता का आकर्षण बन सके, तो मार्ग लंबा नहीं है। अगर कठिनाई का आकर्षण बनता है, तब मार्ग बहुत लंबा हो जाने वाला है क्योंकि बिलकुल आरंभ से ही, अहंकार को गिराने की बजाय तुमने इसे संचित और पुष्ट करना शुरू कर दिया है। तुम और ज्यादा अहंकारी न बनी इसलिए मैं पतंजलि पर बोल रहा हूं। देखना और ध्यान रखना। मुझे सदा भय है पतंजलि के बारे में बोलने से। मैं कभी भयभीत नहीं हूं हेराक्लतु बाशो या बुद्ध के बारे में बोलने से; मुझे भय है तुम्हारे कारण। पतंजलि सुंदर हैं, पर तुम गलत कारणों से आकर्षित हो सकते हो। और यह एक गलत कारण होगा-अगर तुम सोचो कि वे कठिन हैं। तब वह कठिनाई ही आकर्षण बनती है। किसी ने एडमंड हिलेरी से पूछा, जिसने माउंट एवरेस्ट को विजय किया सबसे ऊंची चोटी को, पर्वत की एकमात्र चोटी जो अविजित थी-तो किसी ने उससे पूछा, 'क्यों? क्यों तुम इतनी अधिक मुसीबत उठाते हो? जरूरत क्या है? और अगर तुम चोटी तक पहुंच भी जाओ, तो करोगे क्या तुम? तुम्हें लौटना तो पड़ेगा ही।' हिलेरी ने कहा, 'यह एक चुनौती है मानव-अहंकार के लिए। एक अविजित शिखर को जीतना ही होता है। इसका कोई और लाभ नहीं है।' क्या किया उसने? वह गया वहां, झंडा लगाया और वापस लौट आया! कितनी निरर्थक बात है! और बहुत सारे व्यक्ति मर गये इसी प्रयास में। लगभग सौ वर्षों से बहुत सारे दल कोशिश करते रहे थे। बहुत मर. गये। वे अतल खाई में जा गिरे और नष्ट हो गये और कभी लौट कर न आये। लेकिन यह पहुंचना जितना ज्यादा कठिन हुआ, आकर्षण उतना ज्यादा बना। चांद पर क्यों जाते हो? क्या करोगे तुम वहां? क्या पृथ्वी काफी नहीं है? पर नहीं, मानवअहंकार इसे बरदाश्त नहीं कर सकता कि चांद अजेय बना रहे। आदमी को वहां पहुंचना ही चाहिए क्योंकि यह बहुत ज्यादा कठिन है। इसे जीतना ही है। तो तुम गलत कारणों से आकर्षित हो सकते हो। अब चांद पर जाना कोई काव्यमय प्रयत्न नहीं है। यह छोटे बच्चों की भांति नहीं जो अपने हाथ ऊपर उठा देते हैं और चांद को पकड़ने की कोशिश करते हैं। जब से मनुष्यता अस्तित्व में आयी, हर बच्चा चांद पर पहुंचने के लिए तरसा। हर बच्चे ने कोशिश की है, लेकिन भेद समझ लेना है गहराई से। बच्चे की कोशिश सुंदर है। चांद इतना सुंदर है। इसे छूना, इस तक पहुंचना एक काव्यात्मक प्रयास है। इसमें कोई अहंकार नहीं है। यह एक सीधासादा आकर्षण है, एक प्रेम संबंध। हर बच्चा इस प्रेम संबंध में पड़ता है। वह बच्चा ही क्या, जो चांद दद्वारा आकर्षित न हो?
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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