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________________ श्रद्धा ठीक-ठीक विश्वास जैसी नहीं होती। यह आस्था की भांति अधिक है। आस् अलग है विश्वास से। विश्वास वह चीज है जिसमें तुम जन्मते हो; आस्था वह है जिसमें तुम विकसित होते हो। हिंदू होना एक विश्वास है; ईसाई होना विश्वास है, मुसलमान होना विश्वास है। पर यहां मेरे साथ शिष्य होना आस्था है। मैं किसी विश्वास की मांग नहीं कर सकता-स्मरण रखना। जीसस भी किसी विश्वास की मांग न कर सकते थे क्योंकि विश्वास वह है, जिसमें तुम जन्मते भर हो। यहदी विश्वास से भरे थे; उनमें विश्वास था। और वस्तुत: इसीलिए उन्होंने जीसस को समाप्त कर दिया। क्योंकि उन्होंने सोचा कि वे उन्हें विश्वास से बाहर ला रहे हैं, उनका विश्वास नष्ट कर रहे जीसस आस्था के लिए कह रहे थे। आस्था एक व्यक्तिगत निकटता है, यह कोई सामाजिक घटना नहीं। तुम इसे अपने प्रत्युत्तर, रेसपान्स द्वारा प्राप्त करते हो। कोई आस्था में उलत्र नहीं हो सकता, पर विश्वास में उत्पन्न हो सकता है। विश्वास एक मरी हुई श्रद्धा है; श्रद्धा एक जीवंत विश्वास है। अत: इस भेद को समझने की कोशिश करना। श्रद्धा वह है जिसमें किसी को विकसित होना है। और यह हमेशा व्यक्तिगत होती है। जीसस के पहले शिष्य श्रद्धा को प्राप्त हुए। वे यहूदी थे, जन्मतः यहूदी। वे अपने विश्वास से बाहर सरक आये थे। यह एक विद्रोह था। विश्वास एक अंधविश्वास है; श्रद्धा विद्रोह है। श्रद्धा पहले तुम्हें तुम्हारे विश्वास से दूर ले जाती है। इसे ऐसा होना ही होता है, क्योंकि अगर तुम मुरदा कब्रिस्तान में रह रहे होते हो तब पहले तुम्हें इससे बाहर आना होता है। केवल तभी तुम्हें फिर जीवन से परिचित कराया जा सकता है। जीसस लोगों को श्रद्धा की ओर लाने का प्रयत्न करते रहे। दिखायी हमेशा यह पड़ेगा कि वे उनका विश्वास नष्ट कर रहे हैं। अब जब कोई ईसाई मेरे पास आता है, तब वही स्थिति फिर से दोहरायी जाती है। ईसाइयत एक विश्वास है, जैसे जीसस के वक्त में यहदी धर्म एक विश्वास मात्र ही था। जब कोई ईसाई मेरे पास आता है, मुझे उसे फिर उसके विश्वास से बाहर लाना होता है-उसे श्रद्धा की ओर बढ़ने में मदद देने को। धर्म विश्वास पर आधारित होते हैं, किंतु धार्मिक होना श्रद्धा में होना है। और धार्मिक होने का अर्थ ईसाई होना, हिंदू होना या मुसलमान होना नहीं है, क्योंकि श्रद्धा का कोई नाम नहीं होता; इस पर लेबल नहीं लगा होता। यह प्रेम की भांति है। क्या प्रेम ईसाई, हिंदू या मुसलमान होता है? विवाह ईसाई, हिंदू या मुसलमान होता है। प्रेम? प्रेम तो जाति को, भेदों को नहीं जानता। प्रेम किन्हीं हिंदुओं या ईसाइयों को नहीं जानता। विवाह विश्वास की भांति है; प्रेम है श्रद्धा की भांति। तुम्हें इसमें विकसित होना है। यह एक साहसिक अभियान है। विश्वास कोई साहस नहीं है। तुम इसी में पैदा हुए हो; यह सुविधाजनक है। अगर तुम आराम और सुविधा को खोज रहे हो, तो बेहतर है विश्वास में ही बने रहो। बने रहो हिंदू या ईसाई। नियमों पर चलो। किंतु यह एक मुरदा बात बनी रहेगी, जब तक तुम अपने हृदय से उतर
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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