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________________ इस बच्चे को देखने के लिए। वह कोई साधारण बालक न था, और सारा थिआसाफी आंदोलन उसके चारों ओर घूमने लगा। उन्होंने बड़ी आशा की थी कि वह अवतार होगा; कि वह इस युग का श्रेष्ठतम गुरु होगा। लेकिन समस्या गहरी थी। उन्होंने सही व्यक्ति को चुन लिया था, किंतु उन्होंने गलत ढंग से आशा की थी। क्योंकि वह व्यक्ति जो असंप्रज्ञात बुद्ध के समान उत्पन्न होता है, अवतार की भांति सक्रिय नहीं हो सकता। सारी क्रिया समाप्त हो गयी है। वह मात्र देख सकता है; वह एक साक्षी हो सकता है। उसे बहुत सक्रिय नहीं बनाया जा सकता। वह केवल एक निष्कियता हो सकता है। उन्होंने सही व्यक्ति चुन लिया था, पर फिर भी वह गलत था। और उन्होंने बहुत ज्यादा आशा बांध रखी थी। सारा आंदोलन कृष्णमूर्ति के चारों ओर तेजी से घूमने लगा। जब वे इससे बाहर हो अलग हो गये, तो वे बोले, 'मैं कुछ नहीं कर सकता क्योंकि किसी चीज की जरूरत नहीं है।' सारा आंदोलन ही विफल हो गया क्योंकि उन्होंने इस आदमी से बड़ी आशा रखी थी, और फिर सारी बात ने ही पूर्णतया अलग मोड़ ले लिया। किंतु इसकी भविष्यवाणी पहले से ही की जा सकती थी। एनी बीसेंट, लेडबीटर और दूसरे, वे बहुत प्यारे व्यक्ति थे, पर वास्तव में पूरब की विधियों के प्रति सजग न थे। उन्होंने पुस्तकों से, शास्त्रों से बहुत कुछ सीख लिया था, किंतु वे ठीक-ठीक रहस्य को न जानते थे जिसे पतंजलि दर्शा रहे हैं; कि एक असंप्रज्ञात बुद्ध, एक विदेह जन्म लेता है, पर वह सक्रिय नहीं होता। वह एक निष्कियता होता है। उसके द्वारा बहुत कुछ हो सकता है, पर वह तभी हो सकता है जब कोई आये और उसे समर्पण करे। क्योंकि वह एक निक्रियता है। वह बाध्य नहीं कर सकता तुम्हें कुछ करने को। वह मौजूद है, लेकिन वह आक्रामक नहीं हो सकता। उसका निमंत्रण पूरा है और सबके लिए है। यह एक खुला निमंत्रण है, पर वह विशेष रूप से तुम्हें निमंत्रण नहीं भेज सकता, क्योंकि वह सक्रिय हो नहीं सकता। वह एक खुला द्वार है; अगर तुम्हें पसंद हो, तुम गुजर सकते हो। आखिरी जीवन एक परम निष्कियता होता है। मात्र साक्षित्व। यह एक मार्ग है : असंप्रज्ञात बुद्ध जन्म ले सकते हैं पिछले जन्म की परिस्थिति के परिणामवश। किंतु इस जन्म में भी कोई असंप्रज्ञात बुद्ध बन सकता है, उनके लिए पतंजलि कहते हैं : श्रद्धा वीर्य स्मृति समाधि प्रज्ञा। दूसरे हैं जो असंप्रज्ञात समाधि को उपलब्ध होते हैं श्रद्धा प्रयत्न स्मृति एकात्रता और विवेक द्वारा? इसका अनुवाद करना लगभग असंभव है अत: मैं अनवाद करने की अपेक्षा व्याख्या करूंगा, तुम्हें अनुभूति देने को ही,क्योंकि शब्द तुम्हें भटका देंगे।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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