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________________ न पाओ, जब तक तुम अपनी जिम्मेदारी पर धर्म में प्रवेश न करो। और इसलिए नहीं कि तुम ईसाई पैदा हुए। तुम जन्मजात ईसाई कैसे हो सकते हो? धर्म जन्म के साथ कैसे संबद्ध हो सकता है? जन्म तुम्हें धर्म नहीं दे सकता। यह तुम्हें एक समाज, एक पंथ, एक सिद्धात, एक संप्रदाय दे सकता है; यह तुम्हें दे सकता है अंधविश्वास। यह शब्द अंधविश्वास यानी सुपरस्टिशन बहुत अर्थपूर्ण है। इसका अर्थ है' अनावश्यक विश्वास।' सुपर शब्द का अर्थ है अनावश्यक अतिरिका, सुपरल्फुस। विश्वास, जो अनावश्यक बन गया है, विश्वास जो मुरदा बन गया है। किसी समय शायद यह जीवित रहा हो, पर धर्म को फिर-फिर जन्म लेना होता है। ध्यान रहे, तुम धर्म में पैदा नहीं होते, धर्म तुममें बार-बार पैदा होता है। तब यह होती है श्रद्धा। तुम अपने बच्चों को तुम्हारा धर्म नहीं दे सकते। उन्हें खोजना होगा और उन्हें उनका अपना धर्म पाना होगा। प्रत्येक को अपना धर्म खोजना है और पाना है। यह एक जोखम है, साहस है, सबसे बड़ा साहस। तुम अज्ञात में बढ़ते हो। पतंजलि कहते हैं, श्रद्धा पहली चीज है, अगर तुम असंप्रशांत समाधि को उपलब्ध होना चाहते हो। संप्रज्ञात समाधि के लिए तुम्हें तर्क की जरूरत है-सम्यक तर्क की। भेद को समझो। संप्रज्ञात समाधि के लिए सम्यक तर्क, सम्यक विचार आधार है। असंप्रज्ञात समाधि के लिए सम्यक श्रद्धातर्कणा नहीं। तर्क नहीं बल्कि एक तरह का प्रेम होता है। और प्रेम अंधा होता है। यह तार्किक बुद्धि को अंधा दिखता है क्योंकि यह एक छलांग है अंधेरे में। तर्कगत बुद्धि पूछती है, 'कहां जा रहे हो तुम? ज्ञात क्षेत्र में बने रहो। और प्रयोजन क्या है नयी घटना में जाने का? क्यों न पुरानी परत में ही ठहरे रही? यह शुइवधापूर्ण है, आरामदायक है और जो कुछ तुम चाहते हो, यह पहुंचा सकती है।' किंतु प्रत्येक को उसका अपना मंदिर खोजना होता है। केवल तभी वह .जे ?? होता है। तुम यहां मेरे पास हो; यह है श्रद्धा। जब मैं यहां नहीं रहूंगा, तुम्हारे बच्चे शायद यहां होंगे। वह होगा विश्वास। श्रद्धा घटित होती है केवल जीवित गुरु के साथ; विश्वास होता है मत गुरुओं के प्रति, जो अब नहीं रहे। पहले शिष्यों के पास धर्म होता है। दूसरी और तीसरी पीढ़ी धीरे- धीरे धर्म है। तब यह संप्रदाय बन जाता है। तब तम आसानी से उस पर चलते हो क्योंकि तम इसमें उत्पन्न हुए होते हो। यह एक कर्तव्य होता है, प्रेम नहीं। यह एक सामाजिक आचार-संहिता है। यह बात मदद करती है, लेकिन यह तुममें गहरे नहीं उतरी होती। यह तुम तक कुछ नहीं लाती, यह घटना नहीं है। यह तुममें प्रकट हो रही गहराई नहीं है। यह मात्र एक सतह है, एक आकार। जरा जाओ और चर्च में देखो। रविवार को जाने वाले लोग! वे जाते है, वे प्रार्थना भी करते हैं। पर वे प्रतीक्षा कर रहे होते है कि कब यह समाप्त हो!
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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