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________________ यक्ति जो असंप्रज्ञात समाधि को उपलब्ध हो चुका है, प्रतिक्रिया नहीं करता। वह तो सिर्फ देखता है,साक्षी है। और यही साक्षी होने की अग्रि है जो अचेतन के सारे बीजों को जला देती है। तब एक क्षण आता है जब भूमि पूर्णतया शुद्ध होती है। अंकुरित होने की प्रतीक्षा में कोई बीज नहीं रहता। फिर वापस आने की कोई आवश्यकता नहीं रहती। पहले प्रकृति विलीन होती है, और फिर वह स्वयं को विसर्जित करता है ब्रह्मांड में। 'विदेही और प्रकृतिलय असंप्रज्ञात समाधि को उपलब्ध होते हैं क्योंकि उन्होंने अपने पिछले जन्म में अपने शरीरों के साथ तादात्म्य बनाना बंद कर दिया था। वे पुनर्जन्म लेते हैं क्योंकि इच्छा के बीज बचे हुए थे।' ___मैं यहां कुछ पूरा करने को हूं; तुम यहां मेरा हिसाब पूरा करने को हो। तुम यहां सयोगवशांत नहीं हो। संसार में लाखों व्यक्ति हैं। तुम्ही यहां क्यों हो, और दूसरा कोई क्यों नहीं है? कुछ पूरा करना है। दूसरे जो असंप्रज्ञात समाधि को उपलब्ध होते हैं वे श्रद्धा वीर्य (प्रयत्न) स्मृति एकाग्रता और विवेक द्वारा उपलब्ध होते हैं। तो ये दो संभावनाएं हैं। यदि तुम पिछले जन्म में असंप्रज्ञात समाधि को उपलब्ध हो चुके हो, तो इस जन्म में तुम लगभग बुद्ध की भांति जन्मते हो। कुछ बीज हैं जिन्हें पूरा करना है, जिन्हें गिराना है, जलाना है। इसीलिए मैं कहता हूं तुम करीब-करीब बुद्ध की भांति ही उत्पन्न होते हो। तुम्हें कोई जरूरत नहीं है कुछ करने की; जो कुछ घटित हो, तुम्हें तो बस देखना है। इसीलिए कृष्णमूर्ति निरंतर जोर देते है कि कोई जरूरत नहीं कुछ करने की। उनके लिए यह ठीक है, उनके श्रोताओं के लिए यह ठीक नहीं। उनके श्रोताओं के लिए बहुत कुछ है करने को, और वे भटक जायेंगे इस कथन द्वारा। वे स्वयं के बारे में बोल रहे हैं। वे असंप्रज्ञात बुद्ध ही उत्पन्न हुए। वे विदेही उत्पन्न हुए, वे प्रकृतिलय उत्पन्न हुए। जब वे केवल पाच वर्ष के थे, वे स्थान कर रहे थे मद्रास में, अडियार के निकट भारत में, और सबसे महान थिआसाफिस्ट लेडबीटर ने उन्हें देखा। वे f अलग प्रकार के बच्चे थे। अगर कोई उन पर कीचड़ फेंक रहा होता, तो वे प्रतिक्रिया न करते। बहुत सारे बच्चे खेल रहे थे। अगर कोई उन्हें नदी में धकेल देता, तो वे बस चले जाते। वे क्रोधित न होते। वे लड़ाई शुरू न करते। उनकी बिलकुल अलग गुणवत्ता थी-असंप्रशांत बुद्ध की गुणवत्ता। लेडबीटर ने एनी बीसेंट की बुलाया
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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