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________________ लेकिन यह कोई तर्कसंगत चीज नहीं है समझने की। तुम बौद्धिक तल पर इसे समझ सकते हो, पर इससे कुछ होगा नहीं। इसे अस्तित्वगत रूप से आजमाऔ। हर रोज की स्थितियां हैं हर क्षण कुछ गलत होता है। जो हो रहा है उसके साथ बहो और देखो कि तुम कैसे सारी स्थिति को रूपांतरित कर देते हो। उस रूपांतरण के दवारा तम उसके परे हो जाते हो। बुद्ध कभी पीड़ित नहीं हो सकते, यह असंभव है। केवल अहंकार पीड़ित हो सकता है। पीड़ित होने के लिए अहंकार जरूरी है। अगर अहंकार है तो तुम अपने सुखों को भी दुख में बदल देते हो, और अगर अहंकार वहां नहीं होता है, तुम अपने दुखों को सुखों में बदल सकते हो। रहस्य अहंकार में ही छिपा पड़ा है। वैराग्य निराकांक्ष की अंतिम अवस्था है-पुरुष के परम आत्मा के अंतरतम स्वभाव को जानने के कारण समस्त इच्छाओं का विलीन हो जाना। यह कैसे होता है? अपने अंतरतम मर्म को, उस 'पुरुष' को, भीतर के निवासी को जानने के द्वारा ही। केवल उसके बोध द्वारा। पतंजलि कहते हैं, बुद्ध कहते हैं, लाओत्सु कहते हैं कि केवल इसके बोध से सारी इच्छाएं तिरोहित हो जाती हैं। यह रहस्यमय है, और तर्कयुक्त मन यह पूछेगा ही कि यह कैसे हो सकता है कि केवल स्वयं की आत्मा का बोध हो और इच्छाएं तिरोहित हो जाती हैं? ऐसा होता है क्योंकि सारी इच्छाएं स्वयं की आत्मा को न जानने से उदित हुई होती हैं। इच्छाए मात्र अज्ञान हैं आत्मा का। क्यों? क्योंकि वह सब जो तुम इच्छाओं द्वारा खोज रहे हो, वहां है, आत्मा में छिपा हुआ। तो यदि तुम आत्मा को जानते हो, तो इच्छाएं तिरोहित हो जायेंगी। उदाहरण के लिए-तुम शक्ति की मांग कर रहे हो। हर कोई सत्ता की, शक्ति को मांग कर रहा है। शक्ति किसी में पागलपन निर्मित करती है। ऐसा लगता है कि मानव समाज इस ढंग से बना है कि हर कोई सत्ता-लोल्प जब बच्चा पैदा होता है, तब वह असहाय होता है। यह पहली अनुभूति है, और फिर तुम इसे हमेशा अपने साथ ढोते चलते हो। बच्चा पैदा होता है और वह दुर्बल होता है। और दुर्बल बच्चा बल चाहता है। यह स्वाभाविक है क्योंकि हर व्यक्ति उससे अधिक बलशाली है। मां शक्तिशाली है, पिता शक्तिशाली है, भाई शक्तिशाली है, हर एक शक्तिशाली है। और बच्चा बिलकुल दुर्बल है। तब स्वभावत: पहली इच्छा जो उठती है वह है शक्ति पाने की कैसे बलशाली बन जाये, कैसे अधिकार
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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