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________________ है, तब जहां कहीं वह स्वयं को पाते हैं, लक्ष्य होता है। और वे तुलना नहीं कर सकते। वह जो स्थिति है, उससे अन्यथा कुछ हो नहीं सकता। यह है मौजूदा क्षण जो उनके लिए आ बना है; यह सलीब पर चढ़ना ही ताज है। वे दुखी नहीं हो सकते, क्योंकि दुखी होने का मतलब है विरोध। यदि तुम कुछ प्रतिरोध करते हो तो दुख भोग सकते हो। इसे आजमाओ। तुम्हारे लिए यह सूली पर चढ़ना कठिन होगा, किंतु हर रोज की सलीबें हैं, छोटी-छोटी। उनसे ही काम चलाना। तुम्हारी टांग में या माथे में दर्द होता है या तुम्हें सिर-दर्द है। तुमने शायद इसकी प्रक्रिया पर ध्यान न दिया हो। तुम्हारे सिर में दर्द होता है और तुम निरंतर संघर्ष करते हो और प्रतिरोध करते हो। तुम उसे नहीं चाहते। तुम उसके विरुद्ध हो, इसलिए तुम स्वयं को विभाजित कर देते हो। तुम कहीं सिर के भीतर ही खड़े हुए हो और वहां सिर-दर्द है। तुम एक नहीं हो, सिर-दर्द कुछ अलग चीज है, और तुम जोर देते हो कि सिर-दर्द वहां नहीं होना चाहिए। यही है वास्तविक समस्या। एक बार प्रयत्न करो न लड़ने का। सिर-दर्द के साथ बहो, सिर-दर्द ही बन जाओ। मान लो, 'यही है वस्तु स्थिति। मेरा सिर इस प्रकार ही है इस क्षण में। और इस क्षण में कुछ और संभव नहीं है। भविष्य में शायद यह चला जाये, लेकिन इस क्षण सिर-दर्द वहां है।' विरोध मत करो। इसे होने दो, इसके साथ एक हो जाओ। अपने को अलग मत करो, इसके साथ बहो। तब अचानक लहर उमड़ेगी एक नये प्रकार के प्रसन्नता की, जिसे कभी तुमने नहीं जाना है। जब विरोध करने को कोई नहीं होता है,सिर-दर्द भी पीड़ादायी नहीं होता। लड़ाई निर्मित करती है पीड़ा को। पीड़ा का अर्थ है सदा लड़ना पीड़ा के विरुदध। यही है वास्तविक पीड़ा। जीसस स्वीकार कर लेते हैं। इस तरह का है उनका जीवन; यह उन्हें सूली तक ले गया है। यह है उनकी नियति। यही है जिसे परब में उन्होंने सदा भाग्य कहा है- भाग्य, किस्मत। कोई अर्थ नहीं है तुम्हारा भाग्य के साथ विवाद करने में, कोई सार नहीं है इससे लड़ने में। तुम कुछ नहीं कर सकते; यह घट रहा है। तुम्हारे लिए केवल एक बात संभव है-तुम इसके साथ बह सकते हो या तुम इसके साथ लड़ सकते हो। यदि तुम लड़ते हो, तो यह अधिक यंत्रणादायक हो जाती है। यदि तुम इसके साथ बहते हो तो कम यंत्रणा होती है। और अगर तुम समग्रता से बहते हो, तो व्यथा तिरोहित हो जाती है। तुम्ही प्रवाह बन जाते हो। इसे आजमाना जब तुम्हें सिर-दर्द हो, आजमाना इसे जब तुम्हारा शरीर बीमार हो इसे आजमा लेना जब तुम्हें कोई दर्द हो। बस इसके साथ बहना और एक बार भी तुम ऐसा होने देते हो, तो तुम जीवन के गढूतम रहस्यों में से एक तक पहुंच चुके होंगे। वह दर्द तिरोहित हो जाता है अगर तुम उसके साथ बहते हो। और यदि तुम समग्रता से बह सकते हो, तो व्यथा प्रसन्नता बन जाती है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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