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________________ वासी साधक बोला,अगर कोई झगड़े होनेवाले हैं तो मैं जा रहा हूं। मैं जा रहा हूं! तुम मेरे मौन में विघ्न डाल रहे हो।' - यह बात क्या महत्व रखती थी कि वह घोड़ा सफेद था या काला? तीन वर्ष! लेकिन इस ढंग से जीवन प्रवाहित होता था पूरब में। समय-बोध नहीं था। पूरब समय के प्रति बिलकुल सचेतन था। पूरब शाश्वतता में जीया जैसे कि समय व्यतीत नहीं हो रहा था। हर चीज स्थिर थी। लेकिन उस पूरब का अब कोई अस्तित्व नहीं है। पश्चिम ने हर चीज को विकृत कर दिया है, और वह पूरब मिट चुका है। पश्चिमी शिक्षा के कारण हर कोई पश्चिमी है अब। केवल कुछ थोड़े से अकेले लोग अबतक हैं जो पूरबी हैं। और वे पश्चिम में हो सकते हैं, वे पूरब में हो सकते हैं। अब वे किसी तरह पूरब तक परिसीमित नहीं। बल्कि देखा जाये तो कुल मिलाकर पूरी दुनियां,यह सारी पृथ्वी ही पश्चिमी बन गयी है। योग कहता है और इसे तुम अपने में उतरने दो बहुत गहरे क्योंकि यह बहुत अर्थपूर्ण होगायोग. कहता है कि जितने अधिक तुम व्यग्र होते हो, उतना अधिक समय तुम्हारे रूपांतरण के लिए लगेगा। जितने ज्यादा तुम जल्दी में होते हो, उतनी ज्यादा तुम्हें देर लगेगी। शीघ्रता स्वयं ही इतनी उलझन निर्मित करती है कि परिणाम में देर लगेगी ही। जितना कम तुम जल्दी में होते हो, उतने जल्दी परिणाम होंगे। अगर तुम असीम रूप से धैर्यपूर्ण होते हो, तो बिलकुल इसी क्षण रूपांतरण घटित हो सकता है। यदि तुम हमेशा के लिए प्रतीक्षा करने को तैयार हो तो हो सकता है तुम्हें अगले क्षण तक भी प्रतीक्षा न करनी पड़े। इसी क्षण वह बात घट सकती है। क्योंकि यह समय का प्रश्न नहीं, यह तुम्हारे मन की गुणवत्ता का प्रश्न है। असीम धैर्य की आवश्यकता होती है। परिणामों के लिए न ललचना तुम्हें बहुत गहराई दे देता है। लेकिन शीघ्रता तुम्हें छिछला बनाती है। तुम इतनी जल्दी में हो कि गहरे नहीं हो सकते। तुम्हें इस क्षण में रुचि भी नहीं है जो यहां है, बल्कि तुम उसकी ओर आकृष्ट हो जो आगे घटित होने वाला है। तुम परिणाम में दिलचस्पी लेने वाले हो। तुम स्वयं से आगे बढ़ रहे हो,तुम्हारी प्रवृत्ति पागल है। तुम शायद बहुत दूर दौड़ जाओ, तुम बहुत दूर यात्रा कर आओ, लेकिन तुम कहीं नहीं पहुंचोगे क्योंकि जिस लक्ष्य तक पहुंचना है वह बस यहीं है। तुम्हें उसमें डूबना होता है। कहीं पहुंचना नहीं है। और डूब जाना तभी संभव है जब तुम पूरी तरह धैर्यवान होते हो। मैं तमसे एक झेन कथा कहंगा। एक झेन भिक्षु जंगल में से गुजर रहा है। अचानक वह सजग हो जाता है कि एक शेर उसका पीछा कर रहा है, इसलिए वह भागना शुरू कर देता है। लेकिन उसका भागना भी झेन ढंग का है। वह जल्दी में नहीं है,वह पागल नहीं है। उसका भागना भी शांत है, लयबद्ध। वह इसमें रस ले रहा है। यह कहा जाता है कि भिक्षु ने अपने मन में सोचा,' अगर शेर इसका मजा ले रहा है तो मुझे क्यों नहीं लेना चाहिए? '
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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