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________________ और शेर उसका पीछा कर रहा है। फिर वह ऊंची चट्टान के नजदीक पहुंचता है। शेर से बचने के लिए ही वह पेडू की डाली से लटक जाता है। फिर वह नीचे की ओर देखता है-एक सिंह घाटी में खड़ा हआ है, उसकी प्रतीक्षा करता हआ। फिर शेर वहां पहुंच जाता है, पहाड़ी की चोटी पर, और वह पेड़ के पास ही खड़ा हुआ है। भिक्षुबीच में लटक रहा है बस डाल को पकड़े हए। नीचे घाटी में गहरे र सिंह उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। भिक्षु हंस पड़ता है। फिर वह ऊपर देखता है। दो चूहे एक सफेद,एक काला, डाली ही कुतर रहे हैं। तब वह बहुत जोर से हंस देता है। वह कहता है, 'यह है जिंदगी। दिन और रात, सफेद और काले चूहे काट रहै हैं। और जहां मैं जाता हं मौत प्रतीक्षा कर रही है। यह है जिंदगी।' और यह कहा जाता है कि भिक्षु को'सतोरी' उपलब्ध हो गयी-संबोधि की पहली झलक। यह है जिंदगी! चिंता करने को कुछ है नहीं, चीजें इसी तरह है। जहां तुम जाते हो मृत्यु प्रतीक्षा कर रही है। और अगर तुम कहीं नहीं भी जाते तो दिन और रात तुम्हारा जीवन काट रहे हैं। इसलिए भिक्षु जोर से हंस पड़ता है। फिर वह चारों ओर देखता है, क्योंकि अब हर चीज निधर्गरत है। अब कोई चिंता नहीं। जब मृत्यु निश्चित है तब चिंता क्या है? केवल अनिश्चितता में चिंता होती है। जब हर चीज निश्चित है, कोई चिंता नहीं होती है, अब मृत्यु नियति बन गयी है। इसलिए वह चारों ओर देखता है यह जानने के लिए कि इन थोड़ी-सी आखिरी घड़ियों का आनंद कैसे उठाया जाये। उसे होश आता है कि डाल के बिलकुल निकट ही कुछ स्ट्राबेरीज हैं, तो वह कुछ स्ट्राबेरी तोड़ लेता है और उन्हें खा लेता है। वे उसके जीवन की सबसे बढ़िया स्ट्राबेरी हैं। वह उनका मजा लेता है। और ऐसा कहा जाता है कि वह उस घडी में संबोधि को उपलब्ध हो गया था। वह बुद्ध हो गया क्योंकि मृत्यु के इतना निकट होने पर भी वह कोई जल्दी में नहीं था। वह स्ट्राबेरी में रस ले सकता था। वह मीठी थी। उसका स्वाद मीठा था। उसने भगवान को धन्यवाद दिया। ऐसा कहा जाता है कि उस घड़ी में हर चीज खो गयी थी-वह शेर, वह सिंह, वह डाल, वह स्वयं भी। वह ब्रह्मांड बन गया। यह है धैर्य। यह है संपूर्ण धैर्य। जहां तुम हो, उस क्षण का आनंद मनाओ भविष्य की पूछे बिना। कोई भविष्य मन में नहीं होना चाहिए। केवल वर्तमान क्षण हो,श्ण की वर्तमानता, और तुम संतुष्ट होते हो। तब कहीं जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। जहां तुम हो उसी बिन्दु से, उसी क्षण ही, तुम सागर में गिर जाओगे। तुम ब्रह्मांड के साथ एक हो जाओगे। लेकिन मन के लिए अभी और यहीं का महत्व नहीं है। मन को कहीं भविष्य में किन्हीं परिणामों में दिलचस्पी है। तो प्रश्न, एक ढंग से, ऐसे मन के लिए प्रासंगिक है- आधुनिक मन के लिए। उसे 'आधुनिक मन' कहना बेहतर होगा बजाय पश्चिमी मन कहने के। आधुनिक मन निरंतर भविष्य से, परिणाम से मस्त होता रहता है, और अभी और यहीं नहीं होता है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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