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________________ जापान में जब किसी को क्रोध आता है, तो उनका एक परंपरागत शिक्षण होता है; अगर कोई क्रोधित होता है, तो तुरंत उसे कुछ ऐसी बात करनी होती है जो अ-क्रोध की हो। वही ऊर्जा जो क्रोध में सरकने जा रही थी अब अ-क्रोध में सरकने लगती है। ऊर्जा तटस्थ है। यदि तुम किसी पर क्रोध अनुभव करते हो और तुम उसके चेहरे पर चांटा जड़ देना चाहते हो, उसे फूल दो और देखो क्या घटित होता है! तुम उसके चेहरे पर चांटा मारना चाहते थे, तुम क्रोध में कुछ करना चाहते थे। उसे फूल दो और जरा ध्यान दो, क्या घटित हो रहा है। तुम कुछ बात कर रहे हो जो अ-क्रोध की है। वही ऊर्जा जो तुम्हारे हाथ को क्रोध में बढ़ाने वाली थी, अब भी तुम्हारे हाथ को चलायेगी। वही ऊर्जा जो उसे मारने जा रही थी, अब उसे फूल देने जा रही है। स्वभाव बदल गया है। तुमने कुछ किया है। और ऊर्जा तटस्थ है। अगर तुम कुछ नहीं करते, तब तुम दमन करते हो। और दमन विष है। तो कुछ करो, लेकिन विपरीत ही करो। यह कोई नया संस्कार नहीं है। यह तो बस पुराने को अ-संस्कारित करना है। जब पुराना मिट गया है, जब गाउँ विलीन हो गयी हैं, तुम्हें कुछ करने की चिंता न रहेगी। तब तुम सहज रूप से बह सकते हो। प्रश्न चौथा: आपने कहा था कि आध्यात्मिक प्रयास बीस-तीस वर्ष या जिंदगियां भी ले सकता है और तब भी शायद वह बहुत जल्दी हो। लेकिन पश्चिमी मन बहुत परिणामोन्मुख अधैर्यवान और बहुत व्यावहारिक लगता है। वह तात्कालिक परिणाम चाहता है। पश्चिम में धार्मिक तरकीबें आती और जाती हैं दूसरी सनकों की तरह। तब आप पश्चिमी-मन में योग उतार देने का इरादा कैसे करते हैं? मैं पश्चिम-मन में या पूरबी-मन में रुचि नहीं रखता। यह तो बस एक मन के दो पहलूं। मेरी दिलचस्पी मन में ही है। और यह पूरबी, पश्चिमी विभाजन बहुत अर्थ पूर्ण नहीं है। अब तो महत्वपूर्ण भी नहीं है। पश्चिम में पूरबी-मन है और पश्चिमी-मन मौजूद है पूरब मे। और अब सारी बात ही एक गड़बडी बन गयी है। पूरब भी अब शीघ्रता में है। पुराना पूरब मिट गया है पूरी तरह से। इस बात ने मुझे एक ताओ कथा की याद दिला दी है। तीन ताओ वादी एक गुफा में ध्यान कर रहे थे। एक वर्ष व्यतीत हो गया था। वे मौन थे, बस बैठे हुए थे और ध्यान कर रहे थे। एक दिन एक घुड़ सवार पास से गुजर गया। उन्होंने ऊपर देखा। उन तीन एकांत वासियों में से एक बोला, 'वह घोड़ा सफेद था, जिसकी वह सवारी कर रहा था। दूसरे दोनों चुप रहे। एक वर्ष बाद वह दूसरा साधक बोला, 'वह घोड़ा काला था, सफेद नहीं।' फिर एक और वर्ष व्यतीत हो गया। तीसरा एकांत
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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