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________________ रफ्तार पर निर्भर करता है। तो दो मील तक मैं ध्यान से देखता रहा, यह जानने के लिए कि तुम्हारी रफ्तार क्या है। केवल तभी मै जवाब दे सकता था।' तो यह तुम्हारी प्रगाढ़ता पर निर्भर करता है, तुम्हारी रफ्तार पर। पहली बात है, लंबे समय तक का सतत अभ्यास बिना किसी रुकाव के। इसे याद रखना है। अगर तुम अपने अभ्यास का क्रम भंग करते हो, अगर तुम कुछ दिनों के लिए इसे करते हो और फिर कुछ दिनों के लिए इसे छोड़ देते हो, तो सारा प्रयत्न खो जाता है। फिर जब तुम शुरू करते हो दोबारा, तो फिर यह एक शुरुआत होती है। अगर तुम ध्यान कर रहे हो और फिर तुम कहते हो कि कुछ दिनों के लिए इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता, यदि तुम सुस्त अनुभव करते हो, यदि तुम सोया हुआ अनुभव करते हो और तुम कहते हो, मैं इसे स्थगित कर सकता हूं मैं इसे कल कर सकता हूं तो याद रखो कि एक दिन भी गंवाना बहुत दिनों के कार्य को विनष्ट कर देता है! तुम उस दिन ध्यान नहीं कर रहे हो, पर तुम दूसरी बहुत-सी चीजें कर रहे होओगे। वे दूसरी बहुत सारी चीजें तुम्हारे पुराने ढांचे से संबंध रखती है, अत: एक तह निर्मित हो जाती है। तुम्हारा बीता कल तुम्हारे आने वाले कल से अलग हो जाता है। आज एक तह बन चुकी है, एक विभिन्न तह। निरंतरता खो गयी है। और जब तुम कल फिर से शुरू करते हो तो वह फिर एक शुरुआत होती है। मैंने बहुत से लोगों को देखा है प्रारंभ करते, समाप्त करते, फिर प्रारंभ करते। वह काम जो महीनों के भीतर किया जा सकता है, वे उसे करने में कई वर्ष लगा देते है। तो इसे ध्यान में रखना है-बिना व्यवधान के। जो कुछ भी तुम चुनो, उसे अपनी सारी जिंदगी के लिए चुनी। बस उस पर ही चोट करते जाओ। मन की मत सुनो। मन तुम्हें राजी करने की कोशिश करेगा। और मन बड़ा बहकाने वाला है। मन तम्हें सब प्रकार के कारण दे सकता है जैसे कि आज तुम्हें अभ्यास नहीं करना चाहिए क्योंकि तुम बीमार अनुभव कर रहे हो; या सिर दर्द है और तुम रात को सो नहीं सके; या तुम इतने ज्यादा थक चुके हो कि यह अच्छा होगा, अगर तुम आराम ही कर सको। लेकिन ये मन की चालाकियां हैं। मन अपने पुराने ढांचे पर चलना चाहता है। लेकिन मन अपने पुराने ढांचे पर क्यों चलना चाहता है? क्योंकि इसमें न्यूनतम प्रतिरोध होता है। यह ज्यादा आसान है। और हर कोई ज्यादा आसान मार्ग पर चलना चाहता है, ज्यादा आसान दिशा में। मन के लिए यह आसान है-पुराने के पीछे चलना। नया कठिन होता है। मन हर उस चीज का विरोध करता है जो नयी है। तो अगर तुम प्रयोग में हो, अभ्यास में, तो मन की मत सुनो, बस किये चले जाओ। धीरे-धीरे यह नया अभ्यास मन में गहरे उतर जायेगा। और मन इसका विरोध करना समाप्त कर देगा क्योंकि तब यह कहीं आसान हो जायेगा।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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